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________________ । तेर चौमासी व्याख्यान ॥ छंटकाव कयों, ऋतुकुमार देवोये पंचप्रकारना सुगंधि पुष्पोनी समवसरणमां दींचण सुधी दृष्टि करी अने देवोये रजत सुवर्ण अने रत्नमय प्राकार, त्रण कोट, किल्ला, बनाव्या, बच्चे सुवर्णमां हीरामणि माणिक्य रत्नघटीत सपादपीठ सिंहासन | काठीयार्नु रच्यु, उपर अशोक वृक्षने स्थापन कर्यो, चार दिशाओना चारे बारणाओमा बन्ने बाजु एक एक, एम कुल बबे देवताओ स्वरूप॥ चामरो लइ खडा थया. छडीदार देवो खडा थया, बन्ने बाजु धूपनी घडीयो स्थापन करी, बन्ने बाजु वावडीयो स्थापन करी, एक बाजु भगवानने विश्रांति लेवा देवच्छंदो रच्यो, करुणाना समुद्र भगवान् महावीर महाराजा, भव्य जीवरूपी कमलोने विकस्वर करी सद्गतिमा स्थापन करवा, आठमहाप्रातिहार्य युक्त, चोत्रीश अतिशय ऋद्धि, अने पांत्रीश वचनवाणी संयुक्त, देवरचित सुवर्णना नव कमलोने विष पोताना चरण कमलने स्थापन करता, हे नाथ, तुं जीव ! हे देव तुं जय, हे प्रभु ! तुं चिरकालनंद ! हे देवाधिदेव ! तुं घणा वर्ष आ भूमिमंडल पर विचर ! हे करुणासागर ! जगतना जीवसमूहनो संसार समुद्रथी उद्धार कर ? ए प्रकारे इंद्रनरेंद्रनागेंद्र देवेंद्रना जनसमुदायथी खमाखमा थयेला भगवान् महावीर महाराजा, चैत्य वृक्षने प्रदक्षिणा करी, पूर्व दिशा सन्मुख मुख करी, पादपीठ पर पोताना चरण कमलने स्थापन करी सिंहासनना उपर वर्धमान स्वामी बीराजमान थया अने भगवानना पछाडी भामंडल सिंहासनने विषे हतुं, तेमां भगवानप्रतिबिंब पडवाथी, तमाम देव अने मनुष्य वर्गादिक भगवानना रूपने सुखे करी निहालवा लाग्या. भामंडलना अंदर रूपनुं संक्रमण न थाय तो, कोइ भगवानना रूपने जोइ शके नहि, कारण के तीर्थंकर महाराजा अनंतरूपना धणी छे, माटे तेम करवु ज जोइये ते समये व्यंतरादि देवोये त्रण दिशामां वीजा त्रण रूपो भगवानना कर्या. श्रेणिक महाराजा पण
SR No.034170
Book TitleChaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherJain Sangh Boru
Publication Year1936
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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