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प्रातःस्मरणीयश्रीमन्मुक्तिविजय मूलचंदजीगणिगुरुभ्यो नमः
तेरकाठीयानुं स्वरूप.
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यतः त्रैकाल्यं जिनपूजनं प्रतिदिन संघस्य सन्माननं, स्वाध्यायो गुरुसेवनं च विधिनादानं तथावश्यक।। शत्तया च व्रतपालनं वरतपो ज्ञानस्य पाठस्तथा, ह्येषः श्रावकपुंगवस्य कथितो धर्मो जिनेंद्रागमे ॥१॥
भावार्थ:-शास्त्रकारमहाराजा भव्यजीवोने उपदेश करे छे के, जे श्रावकवर्गने विषे श्रेष्ट श्रावक होय, तेनो धर्म छे के, जिनेश्वर महाराजना आगमर्नु श्रवण करवु अने ते श्रवण करवाथी तेने शुं लाभ थाय छे, तथा जैनागमने विषे शुं स्वरूप बतावेल छ ने तेमां केवा प्रकारनी करणी करवी बतावेल छ के, ते करणी करवाथी श्रावक श्रेष्टपणानी छापने मेलवे ते कहे छे, प्रातःकालने विषे सुगंधि द्रव्य पदार्थोथी वासक्षेपादिकथी प्रभुपूजा करे, मध्याह्न समये केसर बरास सुगंधि पुष्पादिकथी पूजा करे, सायंकाले दशांग आदि धूपादिकथी पूजा करे, विशेषमां बनी शके तो निरंतर अष्टप्रकारी पूजा करे, आवी रीते त्रिकाल प्रभुपूजा करवानो तथा दिनप्रतिदिन श्री संघ छे, तेनु सन्मान अने निर्मल भक्ति करवानो, तथा निरंतर कर्मग्रंथादिक प्रकरण आदिनो खाध्याय ध्यान करवानो, तथा श्रद्धा सहित सद्गुरुनी सेवा करवानो, तथा विधिपूर्वक सुपात्रने विषे दान देवानो,