SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 132
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चौमासी व्याख्यान । काठीया स्वरूप॥ ॥६४॥ अतिचार लाग्यो होय, तेनो मने मिच्छा मि दुक्कडं हो, ए प्रकारे श्री संघादिकना पासे कहे. आवी रीते सत्य मिच्छा मि दुक्कडं श्रीसंघ समक्ष आपवाथी सर्वे इष्ट अर्थोनी सिद्धि थाय छे. इति श्रीतपागच्छगगननभोमणिः, श्रीजैनशासनश्रृंगारभूत, निरंतर शुद्धध्यानारूढ श्रीमान १००८ बुद्धिविजयजी (बूटेरायजी) महाराजना मुनिमंडलमुकुटमणिः, गणिवर्य श्रीमान् १००८ मुक्तिविजयजी ( मूलचंदजी ) महाराजना शिष्यवर्य शान्तिना सायर श्रीमान् १००८ गुलाबविजयजी महाराजश्रीना शिष्य मुनिराजश्री मणिविजयजीए चोमासी व्याख्यान नामना ग्रंथर्नु भाषांतर श्री बोरुगामे वीतराग भगवान श्रीपद्मप्रभु महाराजनी कृपाथी संवत् १९८१ ना आसो मासनी शुक्ल पूर्णिमा अने शुक्रवारे पूर्ण करेल छे, ते श्रोता, वक्ता, महानु भावोने चिरकाल सुधी कल्याण-मंगलिकनी माला अर्पण करनार थाओ. 卐yaas.卐Ayyy ॥६४॥
SR No.034170
Book TitleChaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherJain Sangh Boru
Publication Year1936
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy