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________________ 卐 ' ' ' ' | जइ, अरसपरस समाचार नहि जाणता, जुदे जुदे ठेकाणे कन्यानुं सगपण करी आव्या. कन्या मोटी होवाथी लग्न पण नजीक दिवसमाज आव्यु अने भवितव्यताथी त्रणे वरोने समकाले एक ज दिवसे लग्न आववाथी त्रणे जणा समकाले परणवा आव्या अने कन्याने परणवा माटे माहोमांहे विवाद करवा लाग्या. एवामां अकस्मात् कन्याने सर्प करडवाथी मरण पामी. तेथी एक जण तेनी साथे ज अग्निमां बली मुओ, बीजो ते चिताना राखना ढगला पासे उपवास करीने बेठो, त्रीजो परदेशने विषे कन्याने सजीवन करवानी विद्या औषधि लेवा गयो. तेने रस्तामा फरता रखडता केटलायेक दिवसो थया, तेथी पण काइ वळ्यु नहि. एक दिवस कोइक गामने विषे गयो अने त्यां कोइक स्त्री पासे रोटला कराववा तेणे लोट तेने आप्यो. ते स्त्री रोटला घडवा बेठी. एटले छोकरो बहु ज रुदन करवा मांडयो, एटले तेणीये छोकराने उपाडीने चूलाने विषे नाख्यो ते देखी ते माणस हा हा करतो बोल्यो के, हे मूर्खि ! आ तें शुं कयु. बालक उपर आवो क्रोध करी बालकने चूलामां ते क्याइ नखातो हशे के ! धिक्कार छे ? त्हारी स्त्रीपणानी बुद्धिने ! एटले ते बोली के, प्रथम तुं रोटला खाइ ले, पछी बधु सारु थशे. एटले तेणे भोजन कयु, त्यारवाद अमृतनो कुंपो घरमांथी लावीने तेना उपर छांटवाथी छोकरो सजीवन थयो, ते देखी भाइसाहेबनी डागली चसकी. रात्रिये ते कुंपो उपाडी चालतो थयो अने अनुक्रमे कन्यानी राख पडी हती, तेना उपर अमृत छांटवाथी, कन्या अने बली गयेल पुरुष बेठा थया. एटले उपवास करीने बेठेल हतो ते अने जीवतो थयो ते, तथा जीवाडनार त्रणे जणा कन्याने माटे विवाद करवा लाग्या. एटले संकेत करी राखेली दासी बोली के, हे स्वामिनि! तुं मने कहे के, ते कन्याने त्रणेमांथी कोण परणवालायक बने. त्यारे राणी बोली, आजे तो निद्रा 55卐卐卐F卐卐卐 ' '' ' '।
SR No.034170
Book TitleChaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherJain Sangh Boru
Publication Year1936
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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