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________________ चौमासी व्याख्यान । 43 काठीयार्नु खरूप ॥५७॥ E म्हारो पिता कायचिंताये जाय छे. तेने एम खबर नथी के, छोकरी युवान अवस्थावाली थइ छे, माटे आगल पाछल | जवं, पण तेम नहि करवाथी हुँ आq त्यारे ज जाय छे माटे मूर्खतारूपी मांचानो बीजो पायो म्हारो बाप थयो. त्रीजुं कारण ए छे के, काम करावनार माणस बुद्धिवालो होवो जोइये अने माणसनी शक्ति प्रमाणे काम करावQ जोइये, छतां तेनो विचार नहि करता, युवान अवस्थावाला चित्रकारोने, तथा म्हारो बाप वृद्ध छे तेने, सरिखो भाग ज चित्रवा आपेल छे, माटे समजण विनानो ते माणस जे छ ते, मूर्खतारूपी मांचानो त्रीजो पायो थयो अने चोथो पायो तुं, कारण के एक नानामां नानुं बालक पण जाणे छे के, भींत उपर क्याइ पण पीछं रही शके नहि, छतां तें ते लेवा हाथ पसार्यो, माटे त्हारे नखे वाग्यु, तेथी ज मूर्खतारूपी मचानो चोथो पायो तुं थयो, ते सांभली राजा चित्रकारनी पुत्रीनी बुद्धि जोइ रंजन थयो अने तेना बापना पासे मागवाथी ते चित्रकारे पण राजाने पोतानी पुत्री परणावी, राजाये तेणीना उपर प्रसन्न थइ, उत्तम महेल, वस्त्रालंकार, वैभव दासदासी विगेरे तेने आप्यु अने ते दिवस तेणीना महेलमां रात्रि रह्यो. भोग सुखथी परिश्रम पामेलो राजा ज्यारे सुतो, त्यारे प्रथमथी ज शीखवी राखेली दासी बोली के, बाइ साहेब एक कथा कहो. ते सांभली निद्रा नहि पामेलो राजा निद्रा पाम्याना पेठे ढोंग करी सुतो सुतो सांभलवा लाग्यो अने राणीये कथा शरु करी. हवे राणी दासीने कहेवा लागी के, कोइएक शहरमा एक व्यवहारी रहेतो हतो, तेने एक कुमारिका मोटी थवाथी ते कन्याना मावापो अने भाइ, त्रणे जणा चिंता करवा मंडया. कार्य प्रसंगे ते त्रणे जणा कोइ दिवस अलग अलग गाममा 93卐卐। ॥ ५७॥
SR No.034170
Book TitleChaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherJain Sangh Boru
Publication Year1936
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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