SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 120
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चौमासी व्याख्यान । काठीयार्नु स्वरूप ॥ ॥५८॥ *卐卐卐卐E卐995 आवे छे माटे काले कहीश. एम कही निद्रा करी गइ. बीजे दिवसे अधरी कथाने पूर्ण सांभलवानो प्रेमी राजा, तेना घरेज आव्यो अने विषय सुख भोगवी, कपट निद्रा करी सुवाथी, दासीये अपूर्ण कथाने पूर्ण करवानु कहेवाथी, राणी बोली के, | जे पुरुषे अमृत छांटीने कन्याने जीवाडी, ते तेनो पिता कहेवाय, तथा जे कन्याना साथे जीवतो उठयो ते, तेनो भाइ कहेवाय अने जे उपवास करीने बेठो हतो, ते तेनो धणी थह शके. माटे कन्याना मावापे ते उपवास करनारने कन्या परणावी. वळी दासीये बीजी कथा कहेवार्नु कहेवाथी राणी बोली. एक राजाये, सोनी लोको सोनु चोरे नहि, माटे पोताना माणसो सहित खानपानना सामान सहित, तेने भोंयरामा बंदोबस्त करीने राख्यो. ज्यारे घाट घडी रह्या पछी राजाये केटला दिवसो मजुरीना थया छे तेवं पुण्यं, एटले सोनीये छ मास बताव्या. त्यारे दासी बोली के, भोयरामा ज्यां सूर्य चंद्र नथी, त्यां रात्र दिवसनी अने मासनी गणत्री थइ केवी रीते शके १ माटे मने तो आश्चर्य बहु ज थाय छ, तेथी जल्दी कहे ? राणीये कडं के निद्रा बह ज आवे छे, माटे काले कहीश. बली वातों सांभलवानो रसीओ त्रीज दिवसे राजा आव्यो अने सूता पछी दासीये अधूरी कथा पूर्ण करवा माटे कहेवाथी राणी बोली के, ते सोनी रतांधलो हतो, तेथी रात्रि पड्यानी खबर तेने पडी जती अने सवार थाय त्यारे देखतो हतो, तेथी तेणे तमाम दिवसो गणी राख्या हता. फरीथी दासीये कथा कहेवान कहेवाथी राणी बोली-जंगलने विपे एक जबरजस्त फलफुल पत्रोथी भरपूर भरेल अशोकवृक्ष हतुं, पण तेनी छाया नीचे पडती होती, एटले दासी बोली, एम केम बने, मने तो महा आश्चये थाय छे के, वली छाया ते भूमि उपर न पडे तेवं होय खरूं के ? माटे कहे के तेनो परमाथे शुं छे. 5卐ES). ॥ ५८॥
SR No.034170
Book TitleChaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherJain Sangh Boru
Publication Year1936
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy