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________________ 卐卐卐S-卐' मोक्षार्थी जीवोये आत्मानी निंदा करवी अने परनी निंदा छोडी देवी, तेथी आत्मनिंदक जीवो चित्रकारनी पुत्रीना पेठे पुण्यनी परंपराने पामी सुखी थाय छे. __ कोइ एक नगरने विषे एक राजाने पोतानी सभा चित्राववानुं मन थवाथी, तेमणे सारा चित्रकारोने बोलाव्या अने ते तमामने सभा चित्रवा माटे सरिखा भागो वहेंची आप्या. हवे ते चित्रकारोमा एक वृद्ध चित्रकार हतो, तेने एक यौवन अवस्थावाली पुत्री कुमारिका हती ते ज्यारे भोजन लइने तेना पिताना पासे आवे, त्यारे ते कायचिंताये लघुनीति करवा कायम जतो हतो. अन्यदा प्रस्तावे ते कुमारीका चित्रकार पासे हती, ते समये सभा केटली अने केवी चित्रायेली छे, ते देखवा माटे राजा आव्यो अने भींत उपर मोरनुं पिछु चित्रेलुं हतुं, तेने चित्रेल नहिं जाणता, साक्षात् जाणी, राजाये ते लेवा | भीत उपर हाथ नाखवाथी तेना नखे वाग्युं, एटले पासे उभेली चित्रकारनी पुत्री, ते जोइ हसीने बोली के, मूर्खता रूपी मांचानो चोथो पायो पूर्ण थयो. एटले राजाये कह्यु के, ते केवी रीते, ते तुं मने कहे, एटले चित्रकारनी पुत्री बोली के एक दिवस हुं म्हारा पिताने माटे भोजन लइने आवती हती, तेवामा कोइक घोडेस्वार घोडा उपर बेसी घोडो राजमार्गमां दोडावतो आवतो हतो, तेना सपाटामां हुं आवी जवाथी, महामुसीबते बची छं. राजमार्गने विषे स्त्री बालबच्चा वृद्ध ग्लान मांदगीवाला नाना मोटा अनेक जीवो आवता होवाथी अने जोसभर घोडो दोडाववाथी, माणसोना खून थइ जाय छे, माटे ज रस्तामा घोडा दोडावनारा मामूर्खा कहेवाय छे, तेथी मूर्खतारूपी मांचानो पहेलो पायो, | भर बजारमा घोडो दोडाववावालो थयो, बली बीजी वात ए छे के, हुं ज्यारे भोजन लइने आq छु, त्यारे ज सदा '
SR No.034170
Book TitleChaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherJain Sangh Boru
Publication Year1936
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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