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________________ 5可555555啾5礻5 नाखवाथी मुखने विषे मातो नथी, तेमांथी नीचे पडी जाय छे, जेथी करी मुखनी विक्रिया थाय छे, आवी विक्रिया थाय तेवो कवल जोइये नहि, अगर मुखना अंदर नाखवाथी मुखने स्पर्श करे, तेवा ज प्रमाणनो कोलियो जोइये, परंतु प्रमाण सी थकी अधिक जोइये नहि. मा न त्रीशकवलनो आहार को छे. ते करता पण ओछो आहार करनारा उनोदरी तप करनारा कहेवाय छे. एक कबव्या लथी आठ कक्ल सुधी आहार करवो ते विशिष्ट प्रकारे उनोदर कहेवाय छे, नव कवलथी सोळ सुधी आहार करवाथी मध्यम उनोदर का छे, सत्तर कवलथी चोवीस कवलनो आहार करवाथी जघन्य उनोदर कहेवाय छे अने पच्चीश कवलथी अडाव सुधी सामान्य उनोदर कहेवाय छे. ओगणत्रीशथी त्रीश एकत्रीश कवल सुधी यत् किंचित् उनोदर कहेवाय छे अने बत्रीश कवलनो आहार पूर्ण कुक्षी संबल कहेवाय छे. बत्रीश कवलमांथी पण एकाद वे कवल ओछा न राखे तो अतिचारना भागीदार थाय छे. अत्यारे ते विधि थोडी ज देखाय छे. अत्यारे तो कवलना परिमाणने त्याग करी, छेक नाक, गला ने आंखो सुधी भरवामां आवे छे. भोजन करता आंखोमां आंसु आवे, पेट तणाय, पाणि पीवानी जग्या न रहे, ने पोतीया दीला मुकवामां आवे तो पण आ जीवने तृप्ति न थाय. जाणे के बधुंये गटरगस करी जाउं आवी भावनावाला उनोदरता जाणता नथी, ते उपवासादिक तप तो क्यांथी ज करे. माटे ज भाग्यवान जीवोये प्रथम पोताना देहना हितार्थे उनोदरता स्व प्रगट करवा निमित्ते, वीतरागनी आज्ञाना प्रतिपालन करवा निमित्ते, कर्मने क्षीण करवा निमित्ते अने मोक्ष सुख मेळवावा निमित्ते, उनोदरता करता शीखी धीमे धीमे उपवासादिक महान् तपस्या करता शीखवं जोइये. हवे सत्य उपवास कोने कहे ते बतावे छे. भा ते षां 5 25 5 25 25 5 ठी या
SR No.034170
Book TitleChaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherJain Sangh Boru
Publication Year1936
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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