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चौमासी
व्याख्यान ॥
काठीयार्नु स्वरूप ॥
॥५०॥
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बेसणादिक तपने विषे तेमज कोइपण प्रकारना तप सिवाय खुल्ले मुखे भोजन करनारा मनुष्योने पण उनोदरी तप तो जोइए | ज कारण के उनोदरीपणुं पण एक प्रकारनो तप ज छे अने तेथी पण महान् लाभ थाय छे. हवे द्रव्यथी ए उनोदरी तपनी | विधि नीचे प्रमाणे छे. प्रथम तो बत्रीश कवलनो आहार कहेल छे, तेमांथी पण ओछा कवल आहार करवाथी उनोदरपणुं कहेलुं छे.
यतः बत्तीसं किरकवला, आहारो कुछिपूरओ भणिओ। पुरिसस्स महिलियाए, अठावीसं भवे कवला ॥१॥
भावार्थ:-श्रीमान् शास्त्रकार महाराजाये पुरुषोने निश्चय बत्रीस कवलनो आहार कहेल छे, तेम ज स्त्रीयोने अट्ठावीश कवलनो आहार कहेल छे अने उपरोक्त प्रमाणे ज आहारने अंगीकार करवाथी कूक्षिने पूर्ण करे छे.
केटलायेक स्त्री-पुरुषोने आहारना प्रमाणनी खबर नथी होती अने तेथी ज तेओ कदाच प्रश्न पृच्छा करे के, कवल कोलियो, केटला अने केवा प्रमाणनो गणवो, तेथी शास्त्रकार महाराजा कवलनुं प्रमाण देखाडे छे.
यतः कवलस्स य परिमाणं, कुक्कुडिअंडगपमाणमित्तं तुजं वा अविगियवयणो, वयणम्मिछुभिजविसंतो॥२॥
भावार्थ:-कवलनुं प्रमाण कुकडीना इंडा प्रमाण मात्र कहेल छ, अथवा जे कोलीयो मुखने विषे नाखवाथी मुख विक्रिया न पामे, एटले के मुखना अंदर कोळियो नाखवाथी गाल सखत फुली जवा न जोइये, तेम ज मुखने विषे कोळियो
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