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कर्मो नाश पामे. आ तप बाह्य ने अभ्यंतर बार प्रकारे कहेल छ, विधिसहित शांतिथी तप कर्म करवाथी, नाना प्रकारनी लब्धियो प्राप्त थाय छे, किंबहुना आठे प्रकारना कर्मोने तपकर्म लीलामात्रमा हणी नाखे छे. माटे ज महानुभाव जीवोये ढप्रहारीना पेठे पूर्णभावथी शांति सहित तप, आराधन कर, जेथी करीने परमपदनी प्राप्ति थाय.
सांप्रतकालना केटलायेक जीवोने तप उपर श्रद्धा ज थती नथी, केटलाकने तपकर्म तीक्ष्णशस्त्रनी धारा जेवो लागे छे, केटलाको हाय ! हाय ! बल पराक्रम घटी जशे, आवा भयथी तपकर्म करता. नथी, केटलाको बोले छ के, मानवजन्म मल्यो छे ते, मोजशोख उडाववा माटे, तेम ज खावापीवा ने खेलवा माटे, तो नाहक एवी कटाकट कोण करे, केटलाक कहे छ के गोळ घी मीठा परलोक कोणे दीठा. हाथमां आवेल सुखने त्याग करनारा महा मूर्खाओ कहेवाय छे. कोइक जीवो स्वभावथी ज तपकर्मना रसीया होय छे, कोइक जीवो तीथिपर्योने विषे ज तपकर्म करे छे, कोइक जीवोने तपकर्म इष्ट ज नथी होतुं, कोइक जीवो रात्रि भोजन होटल चाह बीडी पान सोपारी सोडा लेम्बन बरफ आइसक्रीम तमाकु कोकीनना रसीया होवाथी अने तेमां फसीया होवाथी, तपकर्मने करता नथी अने तेथी बिचारा मानव जन्मने हारी जाय छे. तप करवामां पैसो बेसतो नथी, पण शरीरनी सुखाकारी साथे कर्मनी निर्जरा थाय छे अने आत्मा पापभारथी हलको थाय छे, एटलुंज | नहि पण सर्वथा प्रकारे कर्मथी हलको थाय छे ने मोक्षने विषे शीघ्रताथी जाय छे. | हवे तप एटले विकारना हेतुभूत जे विगय-विकृतियो दूध, दही, घी, तेल, गोळ अने पक्वान्नादिक कहेवाय छे, तेनो त्याग करवो तेनुं नाम तप कहेवाय छे. उपवास, छट्ठ, अट्ठमादिक तपकर्म कर्मनी निर्जराना हेतुभूत छे. आयंबिल, एकाशन,