________________
चौमासी
व्याख्यान ॥
काठीयार्नु स्वरूप ॥
॥४९॥
y卐4卐卐999)
रूपीयानुं पाणि करे छ, वली भाट भांड भवाया ने बारोट चारणो बीरुदावलि बोले छे, भले बापाने भले, कलिकाल कल्पवृक्ष फलाणा शेठने त्यां सुपुत्र चिंतामणि रत्न पाक्यो, दुनियाना दारिद्रो दूर कर्या, जगतमा करणनो अवतार, दातार दिकरो पाक्यो, खमा बापुने खमा ! साबाश छे ! साबाश !! जगतना जीवन सुखी करनारा तमोने धन्य छे! अगर तमो तो पिता करता पण चड्या, तमारा पिताये हजारो अर्पण कर्या हता, बापुजी ! तमोये तो लाखोना लेखाने पण गण्या नहि. | वाह ! अन्नदाता वाह ! आहाहा हा ! आवा दानथी बापा देवता पण डोलवा लाग्या छे, घणुं जीवो! अमर रहो ! अचल रहो! ए बापुना घरमां मेहेर लक्ष्मीनी रहो, अखूट भंडार रहो, पूरण तपो, विगेरे प्रकारनी बिरुदावली सांभली फुली जइ, जे पैसा उडाडवामां आवे छे, तेनुं नाम कीर्तिदान कहेवाय छे. केटलाक अज्ञानि निर्गुणी जीवो पैसानुं पाणि करी, जगतने विषे पोतानी जूठी विरुदावली बोलावे छे, तेनी दुनिया हांसी करे छे. काइ लाभ मलतो नथी ने लक्ष्मीने लाखो गमे लुंटावे छे. आवा फुलणजीने कोइ धर्म मार्गे लक्ष्मी वापरवानुं कहे तो, पेटमां पीड आवे, कां तो गाळो दे, कां तो बचका भरे, कां तो मारवा दोडे, आवा जीवोने धर्म बुद्धि नहि होवाथी केवल कीर्तिनी ज प्राप्ति थाय छे, दुनियामां आवा जीवो पण घणां ज होय छे. अनुकंपा, उचित अने कीर्तिदान, त्रणे भोगादिकने आपनारा छे. तो पण बाहुल्यताथी सुपात्र दान, तथा अभयदाननां जीवोये रसीया थइ, मनुष्यजन्मनी साफल्यता करवी. ___ हवे शास्त्रकार महाराजा तप फलने कथन करे छ. तपकर्मनुं फल कोइक अलौकिक प्रकारचें छ. तपथी इंद्रियोनी शांति थाय छे, विकारो नाश पामे छे, मन काबुमा रहे छे, चित्त स्वस्थ बने छे, देह निर्मल बने छे, मलीन अने चीकणा
॥४९॥