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________________ 55¢5卲5cm5可5玕5m255 'लावीने तेने थोडाथी पण थोडं आपकुं, जेथी मानव जन्मनी सार्थकता गणाय. ते हवे चोथुं उचितदान कहे छे. उचित एटले शुं १ माणसोने तथा प्रकारनो विचार अने विवेक होवो जोइये के, जेने त्यां सी जेवो प्रसंग होय तेने तेवुं आप जोइये, जेम के कोइ साधु आव्यो तो तेना साधुपणाने लायक आपकुं, भिक्षु आव्यो तो भिक्षुपणाने लायक आपकुं, बीजो कोइ आव्यो तो तेनी अनुकुलताथी आपवुं, अगर पोताना घरे अवसर होय, वृद्ध माबापोना खर्चे करवाना होय, त्यारे तथा पुत्र-पुत्रीयोना लग्नोना समये, स्त्री-कन्या - व्हेनना श्रीमंतोना समये, तेमज पुत्र-पुत्रीयोना जन्म समये घरने विषे आवेला तेडेला लोकोने वस्तुपात्र वस्त्र दर दागिना विगेरे जे आपवामां योग्यता प्रमाणे आवे छे, तेने पण एक रीते उचित गणी शकाय छे. माटे ए उपरोक्त प्रकारे बने रीति नीतिथी यथा समये दान अपाय छे ते, उचित दान कहेवाय छे. षां या नुं हवे पांच कीर्त्तिदान कहे छे. लोको सेंकडो हजारो ने लक्ष रुपीयाओ पोतानी कीर्ति माटे उडाडे, मातापिताना मरण भा पछाडी, कारज ने चोकरा करी, फुलणजी थह रूपीयानो धूमाडो करे. लोको लाड, शीरोपुरी, कचोरी, मोतीचूर, जलेबी, साटा, खाजा, भजीया, खमण ढोकळा, रायता, चटणी विगेरे खाइ खाइने बोले के, वाह भाह वाह ! नाथाभाइ जेवा दीकरा थोडा थवाना छे ! तेना सुपुत्रपणाने धन्य छे, जेणे माबापना पाछल रूपीया कांकराना पेठे उडाडी अने घी पाणिना पेठे वापरी, स्व 5 बापदादानी कीर्त्तिने अमर करी छे, आवी रीते वाहवाह घडीक बोले छे, लग्नादिक प्रसंगमां पण, नाटकादिक, तायफा, वेश्याओ नचाववामां, वरघोडानी धमालमां दारुखानामां, वाजागाजामां ने खानपानो तेम ज शणगार शोभामां घणा
SR No.034170
Book TitleChaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherJain Sangh Boru
Publication Year1936
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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