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________________ पता होगा कि सिंह कभी बकरी का शिकार नहीं करता। वह उसे तुच्छ और छोटा प्राणी समझकर छोड देता है। फिर भी बकरियाँ तो उनसे डरती है। सिंह ने बडा समूह देखकर गर्जना की। गर्जना सुनकर भेड-बकरियोंका समूह वहा भाग गया। भेडों की तरह वह सिंह शिशु भी घबरा गया, डर गया और भगने का प्रयास करने लगा इतने में सिंह ने कहा, तू डरता क्यों है? हम कभी डरते नहीं, हम तो डराते है। हम सजातीय हैं। तू मेरे जैसा ही है। आपको क्या लगता है? क्या बच्चे ने उस बात को माना होगा? हमें हमारे पुरिषसिंहाणं आकर कह दे कि, तू मेरे जैसा ही है, तू भी भगवत् स्वरुप है । तो क्या हम मान लेंगे ? क्या हम प्रभु की इस बात का स्वीकार कर लेंगे कि मैं जो दिखता हूँ वह मैं नहीं हूँ। मैं तो भगवान आत्मा हूँ। नहीं न? वह बच्चा हमसें अधिक होशियार था। यह कहनेवाला कौन है? किस गर्जन है? सब भग गए। वह इन्वेस्टिगेशन में लग गया। वह सिंह के सामने आया । आखों में आखें डालकर एकटक देखने लगा। अनिमेष नयनो से देखते हुए सिंह शिशु में एक नई शक्ति का संचार हुआ। उसे देखकर सिंह ने पुनः गर्जना की। पंजा उठाया परंतु सिंह शिशु घबराया नहीं । उसकी आखों में एक आश्चर्य था, कौतूहल था । मेरे साथ की बकरियाँ क्यों डर गयी ? इसमें घबराने जैसा क्या था? भयभीत होकर क्यों भग गई? डरने जैसा इसमें कुछ भी नहीं है। सिंह उस सिंह शिशु को लेकर नदी के तटपर आया । स्वयं पानीमें देखने लगा। उसे ऐसा करते हुए देखकर सिंह शिशु ने भी वैसा ही किया । पानी में स्वयं के प्रतिबिंब को देखकर बारबार स्वयं को और सिंह को घुरघुर कर देखता रहा । स्वयं को बकरियों से भिन्न जानकर उसने गर्जना करके निर्णय किया कि क्या मैं सच ही बकरियों से भिन्न हूँ? स्वयं के सामर्थ्य को समझकर उसे बोध हुआ कि मैं बकरियों के साथ रहता था पर स्वयं बकरी नहीं हूँ। छलांग लगाना, बें बें करना, घास खाना यह मेरी वास्तविकता नहीं हैं। धीरे धीरे उसका सिंहत्त्व प्रगट हुआ की अनुभूत हुई। जात की भाषा और परिभाषा समझ आई। सामने खडे सिंह ने उसे अपने वनराज होने का परिचय दिया। तू में में करनेवाला नहीं तू गर्जना करेगा तो पूरा वनउपवन कांप जाएगा। तू पंजा उठाकर दहाडेगा तो जंगल के सारे प्राणी भग जाऐंगे। तू और मैं एक निर्भीक जाति के प्राणी हैं। किसी कर्मयोग के कारण तू इन बकरियों के साथ बडा हुआ। परंतु आज जब तुझे स्वयं की पहचान हो गयी हो तो तुझे अपनी जन्म जाति के अनुसार बरतना चाहिए। निर्भीकता हमारा स्वभाव हैं। शूरवीरता हमारी वास्तविकता हैं । हमपर किसी का वर्चस्व हम सहन नहीं कर सकते। स्वयं के प्रति हम कोमल होते हैं, पर दुश्मनों के प्रति हम अत्यंत क्रूर होते हैं। हम इतने वीर्यसंपन्न हैं कि हमारा दूध सोने की थाली में टिक सकता हैं। हम जंगल में कहीं भी जा सकते हैं, पर किसी से डरते नहीं हैं सब प्राणी हम से डरते हैं। हम निर्भीक और निश्चिंत रहते हैं। बेटा! शिस्तबद्ध दिखाई देनेवाली मानवजाति को सात पीढियों की चिंता होती हैं पर हम कल की भी चिंता नहीं करते हैं। भूख लगती हैं तब ही शिकार को निकलते हैं। स्वयं ही मेहनत करके स्वयं ही व्यवस्था करते हैं। हम अवज्ञा स्वभाववाले हैं। छोटे-छोटे, चींटे-चांटे भेड-बकरियों जैसे तुच्छ प्राणियों की हम उपेक्षा करते हैं। बेटा हम खेद और खिन्नता से रहित रहते हैं । हमारा अपना सोचा हुआ 70
SR No.032717
Book TitleNamotthunam Ek Divya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherChoradiya Charitable Trust
Publication Year2016
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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