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________________ खिन्नता उनमें आ ही नहीं सकती है । इच्छा अनिच्छा जैसा कुछ होता ही नहीं है। १०. निष्कंप :- किसी भी प्रकार के गलत काम या मिथ्याभाव में कंपन होता है। परमात्मा मिथ्यात्त्व का त्याग कर श्रेणी का प्रारंभ कर अपूर्व आत्मदशा का अनुभव करते हैं अतः चलविचल कंपन से रहित होते हैं। सिंह शब्द सह धातु से बनता है । सह धातु के दो अर्थ होते है, सहन करना और जीत लेना । जो सहन करते है वो जीतते है । जो सहन नहीं करते वे जीत भी नहीं सकते। यह जीत चाहे स्वयं की स्वयं के प्रति हो या अन्य के प्रति परंतु जीतने के लिए सहना जरुरी है। स्वयं को जीतकर दूसरों को जीता जा सकता है। वर्तमान काल को जीतो चाहे भावी निर्माण को जीतो परंतु जीतने के लिए सहना जरुरी है। जो इन्द्रियों को जीतता है वह आत्मा को जीतता है । जो आत्मा को जीतता है उसकी सर्वत्र जीत ही जीत होती है। तीर्थंकर भगवान की माता को तीर्थंकर के च्यवन के समय स्वप्न आते है उनमें सिंह का तीसरा स्वप्न होता है। भगवान महावीर का चरण चिन्ह भी सिंह था । भगवान महावीर के एक शिष्य का नाम सिंह अणगार था । आजितनाथ भगवान के प्रथम गणधर भगवान का नाम सिंह था । भक्तामर स्तोत्र की एक गाथा में एक साथ भक्ति, शक्ति और प्रिती का तात्पर्य एक साथ बताने हेतु सिंह का उदाहरण मृगेन्द्र शब्द से दिया गया है। त्रिपृष्ट वासुदेव के भव में भगवान महावीर ने बिना शस्त्र सामग्री के शंखपुर के एक सिंह को मार फाडा था। तडपता हुआ सिंह आकुल व्याकुल हो रहा था तब वासुदेव के रथ के सारथि ने नीचे उतर कर केशरी सिंह की केसरी जटा पर हाथ रखकर कहा, हे महाभाग ! शोक रहित हो जाओ, खेद रहित हो जाओ। तुम किसी सामान्य व्यक्ति के हाथ से नहीं मरे हो। तुम जंगल के राजा हो तो तुम्हें मारनेवाला तीन खंड का अधिपति त्रिपृष्ट वासुदेव है । सारथि के आश्वासन को पाकर सिंह ने शांति से प्राणत्याग किया। किसी भव में सारथि के गौतम स्वामी बन पर यह हालिक नाम का किसान बनकर गौतम स्वामी से बोधान्वित होता है । : पुरुषसिंह को समझने के लिए सिंह को समझना होगा। सिंह को समझने के लिए उसके साथ के संबंधों को समझना जरुरी है । सिंह के सामने सिंह सिंह के सामने बकरी सिंह के सामने हरिणी सिंह के सामने बंदर सिंह के सामने कुत्ता एक बार एक सिंह का नवजात शिशु जन्म के साथ ही अकारण उसकी माँ से बिछुड चुका था। अचानक ही वह बच्चा किसी गोपाल के हाथ में आ गया। बडे प्यार से उठाकर उसने उसे भेड और बकरियों के समूह में रख दिया। बकरियों के साथ रहकर वह सिंह शिशु में में करना, घास खाना, छोटी छोटी छलांगे मारना सिख गया । उसे ऐसा कभी न लगा कि ऐसा बरतना मुझे शोभा नहीं देता। ऐसा आचरण मेरे लिए अयोग्य है । एक बार गोवाल इस समूह को जंगल में चराने लेकर गया। चारा लेते लेते बकरियों का समूह नदी के तट पर पहुंच गया। तभी एक सिंह सामने तट पर पानी पीने के लिए आया। उसने बकरियों का समूह देखा। आप को तो 69
SR No.032717
Book TitleNamotthunam Ek Divya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherChoradiya Charitable Trust
Publication Year2016
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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