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________________ शिकार यदि हमारी ही जातिवाला उठा लेता है तो हम खिन्न होकर खेद नही करते हैं। भेडबकरियों के बीच में पला सिंह शिशु जब इतनी गहरी बातें नहीं समझ पाया तब इसे सरल करते हुए सिंह ने कहा, वत्स ! जब एक कुत्ता भोंकता है तो मोहल्ले के सारे कुत्ते भोंकने लगते हैं। परंतु यदि कोई मानव एक कुत्ते को पकडेगा तो सारे कुत्ते भग जाऐंगे। इतना ही नहीं एक गाँव में यदि दूसरे गाँव का कुत्ता आता है तो गाँव के सारे ही कुत्ते उसपर हमला कर देते हैं। हम ऐसा नहीं करते हैं संपूर्ण वन में हमारे जातिबंधु चाहे जिस किसी देश प्रदेश से आये हो एक ही वन-उपवन में समा जाते हैं। यदि कोई शिकारी एक भी सिंह का शिकार करता है तो बाकी के सिंह भग नहीं जाते हैं पर चारों ओर से इकट्ठे होकर शिकारी पर आक्रमण करते हैं। मानव किसी की पार्टी तोडते है, बिझनेस तोडते हैं, नोकर, मेनेजर, मकान, रीत-रिवाज तोडते हैं पर हमें किसी का कुछ तोडने में कोई इंट्रेस्ट नहीं हैं। मानवजात में यदि किसी बच्चे के माता पिता की मृत्यु हो जाती है तो अन्य माता-पिता उसका पालन पोषण आवश्य करते हैं परंतु परायापना उसके साथ कायम रहता है। हमलोग ऐसा नहीं करते है। हम अपने ही बच्चे की तरह उसका पालन पोषण करते हैं। हमारी जाति के नियम सिखाते है। जा वत्स! संपूर्ण वन में विचरण कर। सारे नियमों को याद कर पूर्ण वफादारी के साथ उसका आचरण कर जिससे हमारा सिंहत्त्व सृष्टि का उदाहरण बन जाए। महापुरुषों का उपमान बन जाए। महापुरुषों के साथ जुडा उपमान वरदान बन जाता है। इतना कहकर उसे एक दिशा में भेजकर सिंह स्वयं दूसरी दिशा मे चला गया। परमात्मा के साथ जुडा सिंहत्त्व हमारी उपासना का एक अंग बन जाता है। भक्तामर स्तोत्र में दो पंक्तियों में ही इसका वैशिष्ट्य झलकता है। देखिए कुछ पंक्तियाँ - बद्धक्रमः क्रमगतं हरिणाधिपोऽपि । नाकामति क्रमयुगाचलसंश्रितं ते ।। यहाँपर क्रम शब्द का चार बार उपयोग हुआ हैं। क्रमबद्ध, क्रमगतं, क्रमयुग और नाक्रामति। क्रमबद्ध अर्थात् व्यवस्थित जमाया हुआ। क्रमगतं अर्थात् एक के बाद दूसरा। क्रमयुग अर्थात् दोनों चरण और नाक्रामति अर्थात् आक्रमण नहीं करना। यहाँ प्रथम लाईन के दो शब्द सिंह के लिए है और दूसरी लाईन के दो शब्द परमात्मा के लिए है। क्रमबद्ध एक के बाद दूसरा ऐसे व्यवस्थित चारों चरणों को आक्रमण की स्थिति में तैयार सिंह परमात्मा के दोनों चरणों के बीच में संश्रित किसी भी प्राणी पर आक्रमण नहीं करता है। यहाँपर पुरुषसिंहत्त्व का महत्त्व समझाते हुए सिंह की शूरवीरता को गोण किया गया। इसके साथ ही परमात्मा के आश्रित होने का भी अपना एक अलग महत्त्व होता हैं। - वैसे भी सिंह का आश्रय महत्त्वपूर्ण होता हैं। मैं जब संस्कृत पढती थी उसमें पंचतंत्र नाम का एक ग्रंथ था। उसमें एक रसप्रद कथा आती थी। एकबार शाम के समय में एक बकरी समूह से बिछड गयी। वह समझ चुकी थी उसका अब अकेले वापस गाँव लौटना मुश्किल है। अत: स्वयं के रक्षण की व्यवस्था स्वयं को ही करनी होगी। स्वयं की सुरक्षा के लिए उसने आसपास देखा। नजदीक में ही उसने एक सिंह की गुफा देखी। वह वहाँ जाकर बैठ गई। सिंह को बकरी का दरवाजे पर बैठने का एहसास हुआ परंतु बकरी जैसे तुच्छ जीवों का शिकार बिना कारण
SR No.032717
Book TitleNamotthunam Ek Divya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherChoradiya Charitable Trust
Publication Year2016
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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