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________________ कपड़े बहुत धोये । अभी मनको धोना हैं । वस्त्र तो दूसरे भी धो सकते हैं, किंतु मनको तो हमें ही धोना पड़ेगा । अतः पहला काम : १. २. कल्पना की. जाल बिखेर देना : 'विमुक्तकल्पनाजालम्' समतामें प्रतिष्ठित करना : 'समत्वे सुप्रतिष्ठितम्' आत्मामें डूब जाना : 'आत्मारामं मनः ' • ३. इन तीन सोपानोंमें मनोगुप्ति बंटी हुई हैं । I यह प्रयत्न स्तुत्य हैं । यशोविजयजी आचार्य भगवंत हैं । गुरु आशिष प्राप्त करके जो कुछ सीखे हैं । वे जो सीखाएं वह स्वीकारना । शांति प्राप्ति करनी हो तो मनको एकाग्र बनाना । इसके बिना शांति नहीं मिलेगी । भगवान को भूलना मत, यह खास सूचना हैं । पूज्य यशोविजयसूरिजी : महामहिम प्रभु श्री आदिनाथ को प्रणाम । परम श्रद्धेय परम गीतार्थ पूज्य आचार्य भगवंतके आशीर्वादपूर्वक हमारी साधना शुरु होती हैं । पंचाचारमयी हमारी साधना हैं । सप्ताहमें पंचाचारमें गहराईमें जाने के लिए प्रायोगिक कक्षामें प्रयत्न करना हैं । ज्ञानाचारका पालन आगम-वाचना द्वारा प्रभु के पावन शब्दों से सुनकर किया हैं । दर्शनाचार चेहरे पर दिखता हैं । सबको भगवान पर अटूट श्रद्धा हैं । हमारी बुद्धि वर्तुल हैं । मात्र सर्वज्ञ ही मार्ग दे सकते 1 हैं । उनके चरणों में झूकें, मस्तक को अनुप्राणित करें । आपकी बुद्धि टूट जाय उसके बाद ही श्रद्धा शुरु होती हैं । पद्मविजय नवपद पूजा 'जिनगुण अनंत हैं, वाच क्रम मित दीह; बुद्धिरहित शक्तिविकल, किम कहुं एकण जीह; इशारेसे अशब्द - वाचना भी उन्होंने दी हैं । - प्रभुमें जिनको डूबना हैं, उनको स्वबुद्धि, स्वकर्तव्यों का छेद उडाना चाहिए । वे ही प्रभु मार्ग के उपर चल सकते हैं । चारित्राचार, तप - आचार, वीर्याचार हमारे अंदर हैं ही । २६ WWW.00000OOOO कहे कलापूर्णसूरि- ४
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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