SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 353
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बिराजमान हैं। वहां तूफान हो तो बहुत कठिनाई होती है। उन्हें समझाने के लिए नियम बताना पड़ता है, परन्तु यहां तो गुरुदेव ने नियम उद्धृत किया है, कि मेरी ही कमी है। __ वागड़ सात चौबीसी समाज निश्चय कर ले कि अब के बाद घण्टों तक आने का कोई प्रयोजन नहीं रहे । 'अब कृपणता नहीं करें ।' यह कहने वाले हे हेमचन्द्रसागरसूरिजी ! हमारा समाज कंजूस (कृपण) था । इन पूज्य आचार्यश्री की निश्रा में शंखेश्वर में पाठशाला के लिए एक लाख का फण्ड (चन्दा) हुआ तो फूल गये थे । हम पालीताणा में बिना पते के थे । वह पता (धर्मशाला) इन पूज्य आचार्यश्री की कृपा से मिला है । दूसरों के साथ यह समाज अब कन्धे से कन्धा मिला कर चलने लगा है। हमारी भूलें तो अनेक हैं । हममें अनेक त्रुटियां हैं। उनमें से छूटने का प्रयास करते हैं । यह मात्र धर्मशाला का प्रवेश नहीं है । गत वर्ष वागड़ में प्रवेश किया तब ६५ गांवों की भावना थी कि हमारे वहां चातुर्मास (वर्षावास) हो । ___यहां ६५ गांव उपस्थित हैं । अतः ६५ गांवों में प्रवेश हुआ है, यह मैं कहता हूं । (तालियां) ___ ओसवाल समाज ने दो महिनों तक चातुर्मास की जो रंगत जमाई, वह अद्भुत थी । मुझे प्रत्येक समाचार मिलता था । प्रत्येक रविवार को श्री सकल संघ एकत्रित होता था वह मैं नहीं देख पाया, यह मैं ने एक सुअवसर खो दिया, यह सत्य बात है। पूज्यश्री ने जो एकता का अभियान चलाया है, वह सफल हो । यदि सब जैन एक हो जायें तो अनेक प्रश्न हल हो सकते एकाध वर्ष पूर्व बकरी ईद के दिन महावीर जयन्ती थी । उस दिन कत्लखाने कैसे बन्द हो ? उस समय पूज्यश्री महाराष्ट्र (कहे कलापूर्णसूरि-३Wwwwwwwwwwwwwwwwmom ३२१)
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy