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________________ (२) सभी गुणानुरागी बनें । छोटे सदस्य में भी कुछ गुण तो होगा ही, उसकी उपबृंहणा करें। यह गुण आ जाये तो एकता की लगन साकार हुए बिना नहीं रहेगी। (३) सकल संघ जिनवाणी का श्रवण करे जिससे कमी दूर होगी। पूज्यश्री की वाचना का सार रखा है। पूज्यश्री के अन्तर की यही भावना है । इसे आचरण में लाकर जीवन को मंगलमय बनायें । अध्यात्मयोगी पूज्य आचार्यश्री : सचमुच, आप सब समय निकाल कर उपस्थित हुए हैं । कोई विशिष्ट प्रसंग नहीं है, मात्र धर्मशाला बदली है। गुरु-तत्त्व के प्रति लगाव देख कर हृदय नाच उठता है । हम भी आप सबके दर्शन करके तृप्त हो रहे हैं, देव एवं गुरु के प्रति प्रेम के दर्शन करते हैं । यहां के वैभव का मुख्य कारण आदीश्वर दादा हैं । दुर्बल देहवाला एक व्यक्ति क्या कर सकता है ? दादा का ही यह प्रभाव है। इन आचार्य भगवंतो ने जो उद्गार निकाले हैं उनसे प्रतीत होता है कि सबको प्रभाव हुआ है । आप तो वर्षों से पास में हैं, फिर भी प्रभाव क्यों नहीं पड़ा ? शायद मुझ में ही कमी होगी । मैत्री भाव की सिद्धि हो चुकी हो तो उसे देख कर शत्र प्राणी शत्रुता भूल जाता है, और आप अभी मैत्री बढ़ा नहीं सकते । अतः मैं मानता हूं कि मेरी साधना में ही कमी है । अभी जिन महात्माओं ने उद्गार निकाले हैं, उनके उद्गार फलीभूत हों । ___ मेरे हृदय में तीर्थंकर भगवान प्रतिष्ठित हों । सामान्यतः एक का गुण-गान हो तो दूसरे के गौरव का हनन होता हो उस प्रकार दूसरे को लगता है, फिर भी यहां समस्त महात्माओं ने प्रेम पूर्वक गुण-गान किया । मुझे स्वयं को आश्चर्य होता है, (कहे कलापूर्णसूरि - ३0mmmmmmmmmmmmmmmmm ३१९)
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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