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________________ फिर चेतन में भगवान क्यों न देखे जा सकें ? वे यही देना चाहते हैं तो ही ऋण से मुक्ति हो सकती है । "पू. पंन्यासजी महाराज के पास से जो मिला है वह सबको देना है। तो ही ऋणमुक्ति होगी ।" ऐसा पूज्यश्रीने खास एक बार मुझे कहा था । वि. संवत् २०४४ के सम्मेलन में पूज्यश्री प्रारम्भ करने से पूर्व बारह नवकार गिनने का कहते थे । बारह नवकार अर्थात् समवसरण । तीन प्रदक्षिणा देते समय एक-एक नवकार गिनने से बारह होता हैं । इसी लिए बारह नवकार का महत्त्व है । दो दो समाजों के एक मात्र गुरुदेव सच्चे तब ही गिने जायेंगे जब आप उनके मिशन को पहचानोगे । मेरे प्रगुरुदेव पूज्य पं. भद्रंकरविजयजी महाराज का ध्येय था कि किसी प्रकार यह श्रमण संघ एक हो । यह ध्येय इन पूज्यश्री को पूर्ण करना है । उसके लिए पूज्यश्री को १०० वर्षों तक जीवित रहना है। उसके बाद इन्हें मोक्ष मार्ग पर जाना हो तो भले जायें । पूज्य भानुचन्द्रसूरिजी : भाग्यशालियों ! हम कितने पुण्यशाली हैं ? मानव-भव, जैनकुल आदि मिलने के बाद कलापूर्णसूरिजी जैसे सद्गुरु प्राप्त हुए । पूर्व भव की प्रबल पुण्याई से ही ऐसा प्राप्त होता है । मात्र मिलने से कुछ नहीं होता, परन्तु मिलने के बाद पूज्यश्री के अन्तर के उद्गार समझने हैं । शास्त्रों के अनुसार बोलने वाले आचार्य भगवन् तीर्थंकर-तुल्य हैं, जिनकी झलक मुझे यहां दिखाई देती हैं । ऐसी पुण्याई कहीं देखी नहीं है । ऐसे महान् आचार्यश्री के आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए हमारा सबका तरसना स्वाभाविक है। * पूज्यश्री की वाचना का निष्कर्ष मैं ने इस प्रकार निकाला (१) सकल संघ की कुशलता होनी चाहिये । नवकार का जाप करने से ही योग-क्षेम (कुशलता) होगा । (३१८ 600mmoomwww6666 कहे कलापूर्णसूरि - ३)
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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