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________________ विहार में पूज्यश्री १६-८-२०००, बुधवार भाद्र. कृष्णा -१ गणधर भगवान द्वारा रचित नामस्तव, शक्रस्तव आदि सूत्र इतने महान हैं कि वे अपने चैत्यवन्दन, देववन्दन में जोड़ दिये गये । कितने अर्थ-गम्भीर युक्त हैं ये सूत्र ? 'नमस्कार स्वाध्याय' पुस्तक पढेंगे तो ध्यान आयेगा । 'ध्यान-विचार' का विवेचन लिखना था, परन्तु आधार कौन सा लें ? मैं इस विचार में था । मैंने नवकार गिने । 'नमस्कार स्वाध्याय' पुस्तक समक्ष रख कर संकल्प किया । जो पृष्ठ खुले वही पढ़ना । खोलते ही 'ध्यान विचार' के लिए ही मसाला मिला । एक साथ चार ग्रन्थ मिले । मन नाच उठा । श्री भद्रगुप्तसूरि रचित 'अरिहाण स्तोत्र' श्लोक-३० ग्रन्थ में २४ ध्यान-भेदों के नाम आये । __मानो भगवान ने ही कृपा-वृष्टि की । आगमों में से ही 'ध्यानविचार' आया हुआ है, वैसी प्रतीति हुई । एकाग्र चित्त से साधना करते रहें तो तत्त्व मिलेंगे ही। वैज्ञानिक भी एक ही पदार्थ पर दत्तचित्त होकर कितना अनुसन्धान करते हैं ? योगियों को भी ऐसा ही एकाग्र बनना है । * अभव्य भी बीजाधान के बिना तो यथाप्रवृत्तिकरण अनन्त (२२० 16600 GS 5 GS 6 6 6 6 6 6 6 6 6 6 6 कहे कलापूर्णसूरि - ३)
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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