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________________ गणेश : गण + ईश, गणधरों को याद करो । घर : अपने घर मोक्ष को याद करो । हम इन सबको भूल गये और हमने इतना ही याद रखा - क : कमाना, ख : खाना, ग : गहना बनाना, घ : घर बनाना । (मिट्टी का घर बनाना) बुद्धिमान खड़ा-खड़ा ही घर से निकल जाता है, क्योंकि वह जानता है कि खड़े-खड़े नहीं निकलेंगे तो आड़े होकर तो निकलना ही पड़ेगा । पूज्य धुरन्धरविजयजी म. : एक प्रसंग - गुरु : वत्स ! तुझे मुझसे अलग होना है । साधक : आपको छोड़ कर कहीं भी नहीं जाऊंगा । गुरु : मेरी आज्ञा पालन करके एक हजार मील दूर जाएगा तो भी तू मेरे पास है । आज्ञा का पालन नहीं किया और तू मेरे पास रहेगा तो भी तू दूर है । ऐसा गुरु कुल-वास ही ब्रह्मचर्य है, ऐसा शास्त्रों में उल्लेख है । आगामी रविवार को संघ-भक्ति पर प्रवचन रहेगा । नन्दलालभाई (धर्मशाला के ट्रस्टी) : पूज्य आचार्य भगवन् तथा समस्त पूज्यश्रीयों को सादर वन्दना ! चार-चार रविवारों से इस स्थान पर जिस वातावरण का सृजन हुआ है, वह भारत भर में फैले, ऐसी भावना है । इसका मूल यहां होने का हमें गौरव है। पर्युषण महापर्व के पश्चात् भी यहां अनुष्ठानों का आयोजन हो वैसी अपेक्षा रखते हैं । पूज्य हेमचन्द्रसागरसूरिजी : पूज्य आचार्यश्री शान्तिचन्द्रसूरिजी ने अद्भुत बात बताई है - 'ते धन्ना जेसि हिययम्मि गुरुओ वसंति ते धन्नाण वि धन्ना गुरु-हिययम्मि जे वसंति' गुरु को आप हृदय में बसाओ तो आप धन्य हैं परन्तु यदि जीवन को धन्यतम बनाना हो तो गुरु के हृदय में निवास करना पड़ेगा । प्रत्येक वक्ता के पास भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण देखने को मिला । (२०० & 00000000000 कहे कलापूर्णसूरि - ३)
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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