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________________ कभी-कभी छोटे साधु के पास भी अद्भुत बात सुनने को मिल जाती है । * वनस्पतियों में 'परोपजीवी' नामक एक मात्र दो-तीन इंच की वनस्पति है। जन्म लेने के पश्चात् अधिक जीने की उसको तमन्ना होती है, परन्तु शक्ति नहीं है। करें क्या ? जीवन को अल्पजीवी नहीं बनाना है, दीर्घजीवी बनकर धन्य बनना है । ___मैं तो ऊपर पहुंच नहीं सकता । वह अपने आसपास दृष्टि डालता है (आंख नहीं होती । यह तो मात्र अपनी कल्पना है) और समीपस्थ बड़े वृक्ष की मूल में लिपट जाता है । मूल में से सब चूसता रहता है । विशाल वृक्ष के सभी लाभ उसे प्राप्त होते रहते हैं । ___ इस वृक्ष का दृष्टान्त हम पर घटित करना है ।। (१) सान्निध्य : वह नहीं छोड़ेगा, छोड़ेगा तो मृत्यु है । (२) समीपता : बिना भेद-भाव के सघन निकटता करता है । (३) समग्रता : अपना पूरा शरीर मूल के साथ एकमेक कर डालता ये तीन मुख्य नियम है । इसी से ही उक्त वनस्पति दीर्घ काल तक रह सकती है । वर्तमान काल में हम भी इस वनस्पति के समान तुच्छ हैं । जो मूल परम (गुरु) के साथ जुड़ा हुआ हो, उसे पकड़ लें तो काम हो जाये । आपको आपकी सात पीढियों के नाम शायद ही याद होंगे । हम भगवान महावीर स्वामी तक की पीढियों के नाम गिना सकते हैं । अन्त में आखिरी नाम भगवान का आता है । ये सभी गुरु भगवान के साथ जुड़े हुए हैं । यदि गुरु के साथ जुड़ जायें; सान्निध्य, सामीप्य एवं समग्रता - इन तीनों को अपना लें तो भगवान की वह शक्ति आज भी प्राप्त कर सकते हैं । पूज्य आचार्यश्री नवरत्नसागरसूरिजी : त्रिकालाबाधित शासन के शरण में आये बिना कल्याण नहीं है । भगवान भी जिस तत्त्व के बिना शासन नहीं स्थापित कर सकें वह गुरु तत्त्व है । अद्भुत है यह गुरु-तत्त्व ! कहे कलापूर्णसूरि - ३ 0000000000000000 २०१)
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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