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________________ साया हैं । माता पागल हो गई । फिर माता के पास वे बोले - 'तेरा अभागा पुत्र मैं ही हूं।' साध्वी-माता बोली : 'चल गुरु के पास ।' गुरु का नाम पड़ते ही अरणिक मुनि लौट आये, तब गुरु ने कुछ भी उपालम्भ नहीं दिया । गुरु जानते हैं कि - 'प्रातःकाल का भूला सायंकाल में पुनः लौटेगा ही ।' गुरु का सशक्त हाथ पड़ा और शक्ति प्राप्त हुई । 'वासक्षेप करो, वासक्षेप दो' ऐसा बोला जाता है । 'वासक्षेप डालो' ऐसा नहीं कहा जाता । वासक्षेप के द्वारा गुरु की शक्ति प्राप्त होती है । __उन्ही अरणिक मुनि ने धधकती शिला पर संथारा कर लिया । यह शक्ति गुरु से ही मिली थी । यह जीवन केवल सद्गुरु-योग के लिए ही है । यदि सम्पूर्ण समर्पितता आ जाये तो जीवन मंगलमय बन जाता है । पूज्य धुरन्धरविजयजी म. : आज शीघ्रता न करें, सवा ग्यारह बजे तक बैठे । गुरु सामने ही होते हैं, परन्तु हम उन्हें पहचान नहीं पाते । इस शासन में कभी भी सद्गुरु की अनुपस्थिति नहीं होती, मात्र अपनी पात्रता नहीं होती । जहां गुरु उपस्थित हों वहां भगवान होते ही हैं। पूज्य वीररत्नविजयजी : प्रभु ने केवल ज्ञान से देखकर सभी के लिए मोक्ष-मार्ग बताया है। स्कूल में क्या पढ़े थे ? याद है ? मस्तिष्क में याद हो और उस मार्ग पर चलें तो गुरु के आशीर्वाद मिल सकते हैं । हम छोटे थे तब वर्णमाला सीखीं थी - क : कमल, ख : खरगोश, ग : गणेश, घ : घर इत्यादि। 'क' का कमल कहता है कि जीवन कमल की तरह जीओ, अनासक्त भाव से जीओ । खरगोश की तरह तीव्र गति से समय चलता है, समय को पकड लो । (कहे कलापूर्णसूरि - ३ womowwwooooo00 १९९)
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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