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________________ राजा ने दोनों कुलपतियों से सलाह-मशविरा करके एक वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन किया। जिसका विषय था—'क्षणिकवाद या कूटस्थ नित्यवाद।' विवेचन के लिए दोनों को आधा-आधा घण्टे का समय दिया गया। यथासमय दोनों कुलपति अपने-अपने शिष्य समुदाय के साथ पहुंचे और भद्रासन पर बैठ गये। राजा, मंत्री आदि विशिष्ट व्यक्ति भी मंच पर बैठ गये। ___मंच के मध्य में तीन भद्रासन लगे हुए थे। दो बराबर, जिन पर दोनों कुलपति बैठे थे। मध्य में ऊंचा भद्रासन था। जो इस प्रतियोगिता में विजयश्री वरेगा, वह इस भद्रासन पर बैठकर प्रवचन करेगा। निर्णायक मण्डल में उपाध्यायजी, महामंत्री एवं राजपुरोहित थे। तीनों ही मनस्वी, धार्मिक और तटस्थ मनोवृत्ति वाले व्यक्ति थे। पहले कौन बोले? इसके लिए चिट्ठी का सहारा लिया गया। जिसमें चवर्णाश्रम के कुलपति विज्जूनाथ स्वामी को बोलने का अवसर पहले मिला। उन्होंने विषय पर बोलना प्रारम्भ किया। सब कुछ जानते हुए भी वह सकपका गये, ज्ञान का स्रोत बंद हो गया, विचारों का प्रवाह रुक गया। आधा घण्टे के निर्धारित समय के विपरीत केवल बीस मिनट ही बोल सके, वह भी प्रभावहीन रहा। अब मंजुनाथ स्वामी ने बोलना प्रारम्भ किया। उन्होंने विषय का सुन्दर प्रतिपादन किया। विषय जितना गंभीर था, विवेचन उतना ही सरल, सरस एवं प्रवाहपूर्ण था। प्रवचन सम्पन्न होते ही लोग जय-जयकार करने लगे। राजा ने मंजुनाथ स्वामी को विजयी घोषित किया। मंजुनाथ ने ऊंचे भद्रासन पर बैठकर प्रवचन किया। राजा ने राज्य की ओर से उसे सम्मानित किया। स्वर्ण पालकी में बैठाकर आश्रम पहुंचाया। आश्रम में प्रसन्नता का वातावरण छा गया। चवर्णाश्रम में मायूसी छा गई। आश्रम के संन्यासियों को भी कुलपतिजी के प्रभावहीन भाषण से भारी निराशा हुई। कुलपति को भी अपने पर बहुत ग्लानि हुई। अपने पद से त्यागपत्र देकर बात को ठंडा करना चाहा। आश्रम के कई संन्यासियों ने विज्जूनाथजी को पद न छोड़ने का आग्रह भी किया पर कुलपति सहमत नहीं हुए। आश्रम के ही एक युवा संन्यासी को कुलपति का भार सौंप दिया गया। विज्जूनाथ स्वामी आश्रम की अनुमति लेकर तीर्थयात्रा पर निकले। तीर्थयात्रा तो एक बहाना था, उसे तो यह पता लगा था-मैं जानता हुआ भी समय पर अनजान कैसे हो गया? मेरा ज्ञान का स्रोत अचानक अवरूद्ध कैसे हो गया? इसके लिए वे विशिष्ट ज्ञानी की खोज कर रहे थे। घूमते-घूमते कलंजर आश्रम पहुंचे। विशिष्ट ज्ञानी के बारे में पूछने पर आश्रम के संन्यासियों ने कहा-यहाँ से दो योजन दूर बिजोली पर्वत है, वहाँ गणपति गुफा में मंगुनाथ स्वामी रहते हैं। वे केवल साधु कर्म-दर्शन 245
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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