SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 245
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एक परिव्राजक उस विद्या को हस्तगत करना चाहता था। वह नापित की सेवा में रहा और विविध प्रकार से उसे प्रसन्न कर वह विद्या प्राप्त की। अब वह अपने विद्याबल से अपने त्रिदंड को आकाश में स्थिर रखने लगा। इस आश्चर्य से बड़ेबड़े लोग उस परिव्राजक की पूजा करने लगे। एक बार राजा ने पूछा-भगवन्! क्या यह आपका विद्या का अतिशय है या तप का अतिशय है? उसने कहा-यह विद्या का अतिशय है। राजा ने पुनः पूछा-आपने यह विद्या किससे प्राप्त की? परिव्राजक बोला—मैं हिमालय में साधना के लिए गया। यहाँ मैंने एक फलाहारी तपस्वी ऋषि की सेवा की और उनसे यह विद्या प्राप्त की। परिव्राजक के इतना कहते ही आकाशस्थित वह त्रिदंड भूमि पर आ गिरा। मंत्री ने राजा को बता दिया, इस परिव्राजक ने अपने ज्ञानदाता गुरु का नाम छिपाया है। अब इसकी विद्या नष्ट हो गई। . (15) ज्ञान बिल्व राजा हर्षवर्धन के शासनकाल में कुणाला जनपद में परिव्राजक का भारी प्रभाव था। राज्य में उनके बहुत आश्रम थे। बाहर से भी परिव्राजक आते रहते थे। राजा स्वयं परिव्राजक भक्त था। उस समय कुणाला की राजधानी परिव्राजकों की भी राजधानी मानी जाती थी। कुणाला के दो बड़े प्रभावशाली आश्रम थे—एक का नाम मूंजाश्रम था, जिसके कुलपति मंजुनाथ स्वामी थे। दूसरा था—चवर्णाश्रम, जिसके कुलपति विज्जूनाथ स्वामी थे। दोनों कुलपति अपने-अपने धर्मग्रन्थों के प्रकाण्ड विद्वान थे, मर्मज्ञ थे, अधिकृत वक्ता थे। दोनों के आश्रम में संन्यासियों की संख्या लगभग समान थी। दोनों अपने-अपने आश्रम की महत्ता बढ़ाने में अहर्निश प्रयत्नशील थे। राजा हर्षवर्धन को अपने प्रभाव क्षेत्र में खींचने के लिए दोनों ओर से काफी प्रयत्न हो रहा था। सभी यह जानते थे—जिस पर राजा का झुकाव होगा, उस आश्रम का प्रभाव स्थायी रहेगा। दोनों को समान तुला पर रखते हुए राजा भी थक गया था। उसने सोचा—जिस आश्रम का कुलपति या संन्यासी प्रभावशाली हो, उसी आश्रम को राजकीय मान्यता प्राप्त आश्रम घोषित कर दिया जाये। 244 कर्म-दर्शन
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy