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________________ मैं कैसे करूंगा? अतः तुम मेरे गले में वरमाला मत डालो। मुझे अपना पति स्वीकार मत करो। राजकुमारी ने कहा-गरीब हो या अमीर। माँ के निर्देशानुसार 'आप ही मेरे पति हो' कहते हुए उसने युवक के गले में वरमाला डाल दी। इधर शहर में दोनों बारातें पहुंची। राजकुमारी नहीं मिलने पर बारातें खा-पीकर वापस लौट गई। राजा ने राजकुमारी को ढूंढ़ने के लिए चारों ओर कर्मचारियों को भेजा। तीन ओर से नकारात्मक जवाब मिला। चौथी ओर जाने वाले कर्मचारियों ने देखा कि एक युवक राजकुमारी का हाथ पकड़े हुए आ रहा हैं, राजा को सूचना दी। राजा ने उसको राजमहल में बुलाया। बुलाकर बेटी को एकान्त में समझाया। राजकुमारी ने कहा-पिताश्री ! मैंने जिसके गले में वरमाला डाल दी वही मेरा पति है, दूसरा और कोई नहीं। यह सब कुछ भारण्डपक्षी ने अपनी आंखों से देखा। उसने सोचा-वास्तव में गुरुदेव की बात ही सच्ची हुई। भारण्डपक्षी आकर गुरुदेव के चरणों में नतमस्तक हो गया। उसने कहा—गुरुदेव! आप मुझे पहचानते हो, मैं कौन हूँ? मैं आपके सौ शिष्यों में से एक था। मैं मरकर तिर्यंच योनि में भारण्डपक्षी बना। मैं जब आपके शिष्य रूप में था तब आप जो कहते उसे मैं उलटा मानता। आप कहते दिन तो मैं कहता रात और आप कहते रात तो मैं कहता दिन। मैं आपके शिष्यत्व काल में आपका प्रत्यनीक बना रहा उसी कारण मैं मरकर तिर्यंच बना। फिर भी मैं नहीं संभला। आपकी बात को झूठी साबित करने के लिए मैं उस युवक को जंगल में छोड़ आया। परन्तु आप की बात ही सच्ची रही। गुरुदेव! मुझे माफ करें, अब मेरा कल्याण करें। गुरुदेव ने उसे प्रायश्चित्त देकर शुद्ध किया। उसने संथारा किया। पन्द्रह दिन के संथारे में मरकर वह आठवें देवलोक में गया। (14) ज्ञानदाता का नाम छिपाना एक गांव में एक नापित रहता था। वह अनेक विद्याओं का ज्ञाता था। उसके पास एक विद्या ऐसी थी जिसके प्रभाव से उसका 'क्षुरप्रभांड' (हजामत का सामान) आकाश मार्ग से साथ-साथ चलता था। उसे जहाँ हजामत करनी होती थी वह उस स्थान पर बैठ जाता और इशारा करने पर सामान नीचे आ जाता था। नापित का ऐसा करिश्मा देखकर लोग आश्चर्यचकित हो जाते थे। A कर्म-दर्शन 243
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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