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________________ (13) विशिष्ट ज्ञानी आचार्य कमलप्रभ शहर में पधारे। शहर के काफी लोग प्रवचन में गए। प्रवचन सुना। प्रवचनोपरान्त जनता ने आचार्य से जिज्ञासा की—गुरुदेव! आज राजकुमारी की शादी है। दो बारातें आयेगी, एक राजा के मित्र के यहाँ से और दूसरी रानी के मामा के यहाँ से। राजा की मनोभावना है कि मेरी बेटी राजकुमारी की शादी मेरे मित्र के बेटे के साथ हो और रानी की मनोभावना है कि राजकुमारी की शादी मेरे मामा के लड़के के साथ हो। आप ज्ञानी है, आप ही बताइए किराजकुमारी की शादी किसके साथ होगी? __ आचार्य ने कहा—राजकुमारी की शादी दोनों में से किसी के साथ नहीं होगी। गुरुदेव! फिर किसके साथ होगी? आचार्य ने कहा—सामने फुटपाथ पर जो गरीब युवक सोया हुआ है उसके साथ होगी। लोगों को सुनकर आश्चर्य हुआ। सबने सोचा-जो होगा सो देखा जाएगा। उसी प्रवचन सभा के मध्य एक वृक्ष पर भारण्डपक्षी बैठा हुआ था। उसने सारी बात सुनी। उसके मन में आया कि मुझे गुरु की बात को झूठा साबित करना है। वह सोये हुए उस गरीब युवक को चद्दर सहित अपने चोंच में उठाकर शहर से दूर जंगल में ले जाकर उसे छोड़ दिया। जैसे ही उस युवक की आंख खुली—वह गालियां देने लगा-अरे कौन पापी, दुष्टी है जिसने मुझे ऐसे जंगल में लाकर छोड़ दिया? सोचा था-आज राजकुमारी की शादी है-अच्छे-अच्छे स्वादिष्ट पकवान खाऊंगा। पर सारी मन की बात मन में ही रह गई। भारण्डपक्षी ने सोचा-अरे ! यह तो मुझे गालियां दे रहा है। मैं शहर में जाकर कुछ मिठाइयां लाकर इसे दे दूं। ताकि पेट भरने पर यह गालियां देना बंद कर देगा। वह शहर में गया। राजमहल की छत पर काफी टोकरियां मिठाइयों से भरी हुई थीं। उसके बीच कमलकोश की आकृति वाली टोकरी में राजकुमारी को सजाकर, हाथ में माला देकर बिठाया हुआ था। उसे मां ने शिक्षा देते हुए कहा था बेटी! न मेरी बात मानना और न ही राजा की, जो पहले सामने आए उसके गले में ही यह वरमाला डाल देना। भाग्योदय से भारण्डपक्षी राजकुमारी वाली टोकरी को मिठाई की टोकरी समझकर उठाकर ले आया और उस युवक के पास रख दी। हुआ क्या? जैसे ही युवक ने मिठाई खाने के लिए टोकरी खोली तो अन्दर राजकुमारी थी। युवक ने सोचा-अरे, यह क्या? इसका मैं क्या करूं? मिठाई खाता तो पेट भरता। राजकुमारी माँ के निर्देशानुसार उस युवक के गले में वरमाला डालने लगी। युवक ने आना-कानी करते हुए कहा-देखो, मैं गरीब हूँ। मेरे पास न मकान है और न कोई पेटपूर्ति का साधन। मैं स्वयं भीख मांग-मांग कर पेट भरता हूँ। तुम्हारा पालन पोषण 242 कर्म-दर्शन 242 कर्म-दर्शन MA E
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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