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________________ 1072. उपभोग अन्तराय कर्म किसे कहते हैं? उ. उपभोग—जो वस्तु बार-बार भोगी जा सके उसे उपभोग कहते हैं, जैसे-मकान, वस्त्र आदि। जो कर्म उपभोग में आने वाली वस्तुओं के होने पर भी उन्हें भोगने नहीं देता उसे उपभोग-अन्तराय कर्म कहते हैं। वस्त्र, आभूषण होने पर भी वैधव्य के कारण उसका उपभोग न कर सकना उपभोग अन्तराय कर्म का उदय है। मम्मण सेठ के पास अपार सम्पत्ति प्राप्त थी परन्तु उपभोग-अन्तराय कर्म के उदय के कारण वह अपनी सम्पत्ति का उपभोग नहीं कर सका। 1073. वीर्यान्तराय कर्म किसे कहते हैं? उ. वीर्य—एक प्रकार की शक्ति विशेष है। संसारी जीव में सत्तारूप अनन्तवीर्य होता है। जो कर्म आत्मा के वीर्य गुण का अवरोधक होता है उसे वीर्यान्तराय कर्म कहते हैं। जिस कर्म के उदय से अल्प-आयुष्यवाला युवा भी अल्प-प्राणवाला होता है, उसे वीर्यान्तराय कर्म कहते हैं। जो कर्म जीव के सत्तारूप शारीरिक और आत्मिक शक्ति के प्रकटीकरण में अवरोध उपस्थित करता है, वह वीर्यान्तराय कर्म है। 1074. वीर्य के कितने प्रकार हैं? उ. वीर्य के तीन प्रकार हैं(1) बाल वीर्य—जिसके अंश मात्र भी त्याग प्रत्याख्यान नहीं है, जो अव्रती होता है, उस बाल का वीर्य बाल-वीर्य कहलाता है। (2) पण्डित वीर्य—जो सर्वव्रती होता है, उस पण्डित का वीर्य पण्डित वीर्य कहलाता है। (3) बाल-पंडित वीर्य-जो कुछ अंश में त्यागी है और कुछ अंश में अत्यागी है उस बाल-पण्डित का वीर्य बाल-पण्डित वीर्य कहलाता है। 1075. वीर्यान्तराय कर्म से क्या होता है? उ. वीर्यान्तराय कर्म उपरोक्त तीनों प्रकार के वीर्यों का अवरोध करता है। इस कर्म के प्रभाव से जीव के उत्थान-चेष्टा विशेष, कर्म-भ्रमणादि क्रिया, बाल-शारीरिक सामर्थ्य, वीर्य-जीव से प्रभव शक्ति विशेष, पुरुषकारअभिमान विशेष और पराक्रम-अभिमान विशेष को पूरा करने का प्रयत्न विशेष—ये क्षीण, हीन होते हैं। 1. कथा संख्या 40 कर्मदर्शन 227
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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