SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 229
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 1076. स्थानांग सूत्र में अन्तराय कर्म के दो भेद कौन - कौनसे बताए गए हैं? उ. (1) प्रत्युत्पन्न विनाशी अन्तराय कर्म, जिसके उदय से लब्ध वस्तुओं का विनाश हो । (2) पिहित आगामी पथ अन्तराय कर्म, लभ्य वस्तु के आगामी पथ यानी लाभ मार्ग का अवरोध । 1077. अन्तराय कर्म बंध के कितने कारण हैं? उ. (1) दान, (2) लाभ, (3) भोग, (4) उपभोग, (5) वीर्य ( जीव का सामर्थ्य)। इन सब में कारण, बिना कारण विघ्न डालना अन्तराय कर्म बंध का हेतु है। 1078. अन्तराय कर्म स्थिति कितनी है ? उ. जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट 30 करोड़ करोड़ सागर । 1079. अन्तराय कर्म का अबाधाकाल कितना है ? उ. जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट तीन हजार वर्ष। 1080. अन्तराय कर्म का लक्षण एवं कार्य क्या है ? उ. अन्तराय कर्म कोषाध्यक्ष के समान है। अधिकारी द्वारा आदेश प्राप्त होने पर भी कोषाध्यक्ष के दिये बिना वांछित वस्तु नहीं मिलती उसी प्रकार सब वस्तुएं एवं अनुकूलताएं सुलभ होने पर भी अन्तराय कर्म के दूर हुए बिना उनका भोग नहीं हो सकता। 1081. अन्तराय कर्म भोगने के कितने हेतु हैं ? उ. अन्तराय कर्म के उदय से आत्मशक्ति का प्रतिघात होता है। इनके अनुभाव पांच हैं— (1) दानान्तराय, (2) लाभान्तराय, (4) उपभोगान्तराय, ( 5 ) वीर्यान्तराय ' । 1082. अन्तराय कर्म का उदय कौनसे गुणस्थान तक होता है ? उ. पहले से बारहवें गुणस्थान तक। (3) भोगान्तराय, 1083. अन्तराय कर्म का बंध कौनसे गुणस्थान तक होता है ? उ. पहले से दसवें गुणस्थान तक । 1. कथा संख्या 41 228 कर्म-दर्शन
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy