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________________ 901. कार्मण शरीर किसे कहते हैं? उ. कार्मण शरीर अर्थात् कर्म शरीर। पूर्ववर्ती औदारिक आदि चारों शरीरों का कारण है—कार्मण शरीर। इस दृष्टि से इसे कारण शरीर भी कहा जाता है। 902. कार्मण वर्गणा किसे कहते हैं? उ. कार्मण शरीर के रूप में प्रयुक्त होने वाले सजातीय पुद्गल-समूह को कार्मण वर्गणा कहते हैं। 903. कर्म और कार्मण शरीर भिन्न-भिन्न हैं अथवा एक ही हैं? उ. 'कर्म' कार्मण शरीर में रहते हैं पर कर्म भिन्न है, कार्मण शरीर भिन्न है। कर्म की उत्पत्ति बंधन नाम कर्म और राग-द्वेष के निमित्त से होती है। शरीर की उत्पत्ति शरीर नाम कर्म के उदय से होती है। इसी प्रकार इनका विपाक भी भिन्न है। ज्ञानावरण आदि कर्म का विपाक अज्ञान आदि उत्पन्न करता है। कार्मण शरीर का विपाक कार्मण शरीर को ही परिपुष्ट करता है। 904. कार्मण शरीर का निर्माण किससे होता है? उ. अष्टविध कर्म-पुद्गलों से। 905. अरूप आत्मा एक शरीर से दूसरे शरीर को कैसे प्राप्त करती है? उ. कर्म शरीर के द्वारा। 906. अन्तरालगति के समय कौनसा शरीर होता है? उ. तैजस और कार्मण। 907. किन-किन जीवों के कितने-कितने शरीर होते हैं? उ. * पृथ्वीकाय, अपकाय, तैजसकाय, वनस्पतिकाय और तीन विकलेन्द्रिय असंज्ञी तिर्यंच, असंज्ञी मनुष्य, सर्व युगलियां-इन जीवों के तीन-तीन शरीर हैं-औदारिक, तैजस, कार्मण। * वायुकाय, संज्ञी तिर्यंच तथा मनुष्यणी में शरीर चार पाते हैं—(आहारक शरीर को छोड़कर)। * गर्भज मनुष्य में शरीर पांच पाते हैं। * सात नारकी और सर्व देवता में शरीर तीन पाते हैं—वैक्रिय, तेजस __ और कार्मण। * सिद्धों में शरीर नहीं पाता। 194 कर्म-दर्शन
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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