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________________ वैक्रिय तैजस 908. शरीरों की क्रम व्यवस्था क्या है? उ. * औदारिक शरीर स्वल्प पुद्गलों से निष्पन्न तथा स्थूल परिणतिवाला है। ___ * वैक्रिय आदि शेष चार शरीर क्रमश: बहु, बहुतर, बहुतम पुद्गलों से निष्पन्न होते हैं। इसकी परिणति क्रमशः सूक्ष्म, सूक्ष्मतर, सूक्ष्मतम होती है। 909. किस शरीर की कितने काल की स्थिति? उ. शरीर जघन्य उत्कृष्ट औदारिक अन्तर्मुहूर्त 3 पल्योपम 10 हजार वर्ष 33 सागरोपम आहारक अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त जीव के साथ अनादि। कार्मण जीव के साथ अनादि। 910. एक साथ कितने शरीर हो सकते हैं? उ. दो शरीर-तैजस और कार्मण। तीन शरीर- (1) औदारिक, तैजस, कार्मण। ___ (2) वैक्रिय, तैजस, कार्मण। चार शरीर- (1) औदारिक, वैक्रिय, तैजस, कार्मण। (2) औदारिक, आहारक, तैजस, कार्मण। एक शरीर कभी भी नहीं हो सकता। एक साथ पांच शरीर भी नहीं हो सकते हैं। 911. अंगोपांग नाम कर्म किसे कहते हैं? उ. जो कर्म शरीर के अंग-प्रत्यंगों की प्राप्ति में निमित्तभूत बनता है, वह अंगोपांग नाम कर्म है। 912. अंगोपांग किसे कहते हैं? उ. शरीर के मुख्य अवयवों को अंग कहते हैं। (1) अंग आठ हैं—दो हाथ, दो पैर, पीठ, सिर, छाती, पेट। (2) उपांग-अंगुली, नाक, कान आदि अंगों के साथ जुड़े हुए होने के कारण छोटे अवयवों को उपांग कहते हैं। 913. अंगोपांग नामकर्म की कितनी उपप्रकतियां हैं? उ. अंगोपांग नामकर्म की तीन उपप्रकृतियां हैं—(1) औदारिक अंगोपांग, (2) वैक्रिय अंगोपांग और (3) आहारक अंगोपांग। तैजस और कार्मण के अंगोपांग नहीं होते हैं। HAHEELE R REEEEEEE EE कर्म-दर्शन 195
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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