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________________ 895. आहारक शरीर' किसको प्राप्त होता है ? उ. चतुदर्श पूर्वधर मुनि को । 896. आहारक शरीर किन-किन प्रयोजनों से सर्वज्ञ की सन्निधि में जाता है ? उ. आहारक शरीर चार कारणों से सर्वज्ञ की सन्निधि में जाता हैअर्हत् की ऋद्धि का दर्शन संशय अपनयन । (1) प्राणी दया (3) नवीन अर्थ का अवग्रहण (2) (4) 897. तैजस शरीर नाम कर्म किसे कहते हैं? उ. जिस नामकर्म के उदय से जीव को तैजस शरीर की प्राप्ति होती है उसे तैजस शरीर नाम कर्म कहते हैं। 898. तैजस शरीर किसे कहते हैं? उ. तैजस शरीर - उष्मामूलक विद्युत शरीर । जो शरीर दीप्ति का कारण है, आहार आदि पचाने की क्षमता रखता है और जो तेजोलब्धि का निमित्त है, वह तैजस शरीर है। यह पूर्ववर्ती तीनों शरीरों से सूक्ष्म है। यह शरीर संसार के समस्त जीवों में विद्यमान रहता है। 899. लब्धिप्रत्ययिक तैजस शरीर किसे कहते हैं? उ. विशिष्ट तप प्रभाव से जो तैजस लब्धि प्रकट होती है उसे लब्धि प्रत्ययिक तैजस शरीर कहते हैं। इस लब्धि से अपकार करने के लिए श्राप रूप एवं उपकार हेतु वरदान रूप जो तेजोवर्गणा छोड़ी जाती है उसे क्रमश: तेजोलेश्या और शीतलेश्या कहते हैं। 900. कार्मण शरीर नाम कर्म किसे कहते हैं ? उ. जिस नाम कर्म के उदय से जीव को कार्मण शरीर की प्राप्ति होती है उसे कार्मण शरीर नाम कर्म कहते हैं । 1. आहारक शरीर चौदह पूर्वो के धारक लब्धिवान् मुनि को प्राप्त होता है । जब चौदह पूर्वधारी मुनि को किसी गहन विषय में संदेह उत्पन्न होता है और सर्वज्ञ की सन्निधि नहीं होती और औदारिक शरीर से अन्य क्षेत्रवर्ती सर्वज्ञ के पास जाना संभव नहीं होता तब वे मुनि अपनी आहारक लब्धि का प्रयोग करते हैं। उस लब्धि से एक हाथ का छोटासा विशिष्ट शरीर बनाते हैं। यह शरीर सुन्दर व अव्याघाती ( न किसी को रोकता है, न ही किसी से रुकता है) होता है। इस शरीर में मुनि सर्वज्ञ के पास जाकर अपना संदेह निवारण करते हैं। पुनः औदारिक में आ जाते हैं। उसके पश्चात् वह शरीर बिखर जाता है। यह सब कार्य अन्तर्मुहूर्त में ही हो जाता है। कर्म-दर्शन 193
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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