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________________ 695. सम्यक्त्व के आचार कितने हैं? उ. सम्यक्त्व के आठ आचार हैं— (1) नि:शंकित—वीतराग वचनों पर दृढ़ आस्था रखना, संदेह नहीं करना। (2) नि:कांक्षित — कुमत की वांछा न करना । (3) निर्विचिकित्सा — धर्म के फल में संशय न करना । (4) अमूढ़दृष्टि — परदर्शन की समृद्धि देखकर न फंसना । (5) उपबृंहण –—–— साधार्मिक का गुणोत्कीर्तन करना । (6) स्थिरीकरण — धर्म के पथ से विचलित व्यक्तियों को पुन: धर्म में स्थिर करना । (7) वात्सल्य — गुरु, तपस्वी, शैक्ष, ग्लान आदि की विशेष सेवा करना । (8) प्रभावना — वीतराग शासन की महिमा बढ़ाना। 696. सम्यक्त्व और ज्ञान में क्या अन्तर है ? उ. जैसे अवग्रह और ईहा सामान्य अवबोध के कारण दर्शन है और अवाय तथा धारणा विशेष अवबोध के कारण ज्ञान है, वैसे ही तत्त्व विषयक रुचि श्रद्धा सम्यक्त्व है और जिससे जीव आदि तत्त्वों पर श्रद्धा होती है वह ज्ञान है। 697. मिथ्यात्व मोहनीय कर्म किसे कहते हैं? उ. जो कर्म तत्त्वों में श्रद्धा उत्पन्न नहीं होने देता और विपरीत श्रद्धा उत्पन्न करता है उसे मिथ्यात्व मोहनीय कर्म कहते हैं। इसके उदय से जीव मिथ्यादृष्टि वाला होता है। तीसरा गुणस्थान प्राप्त नहीं होता । 698. मिथ्यात्व किसे कहते हैं ? उ. तत्त्व में अरुचि और अतत्त्व में रुचि होना मिथ्यात्व है। 699. मिथ्यात्व के कितने प्रकार हैं? उ. मिथ्यात्व पांच प्रकार का होता है (1) आभिग्रहिक मिथ्यात्व : तत्त्व की परीक्षा किये बिना किसी सिद्धांत को ग्रहण कर दूसरे का खण्डन करना । यह दीर्घकालिक होता है। (2) अनाभिग्रहिक : गुणदोष की परीक्षा किये बिना सब मंतव्यों को समान समझना । (3) आभिनिवेशिक : अपनी मान्यता को असत्य समझ लेने पर भी उसे पकड़े रहना। यह अल्पकालिक होता है। 154 कर्म-दर्शन
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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