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________________ (4) अनाभोगिक : ज्ञान के अभाव में या मोह की प्रबलतम अवस्था के कारण ं गलत तत्त्व को पकड़े रहना । (5) सांशयिक : देव, गुरु और धर्म के स्वरूप में संदेह - बुद्धि रखना । अनाभिग्रहिक मिथ्यात्वी कौन होते हैं? 700. उ. असंज्ञी और अज्ञानी अनाभिग्रहिक मिथ्यात्वी होते हैं। कुछ संज्ञी भी अनाभिग्रहिक मिथ्यात्वी होते हैं। 701. शास्त्रों में वर्णित व्यावहारिक मिथ्यात्व के दस प्रकार कौनसे हैं ? उ. ठाणं सूत्र के दसवें स्थान 74वें सूत्र में मिथ्यात्व के दस प्रकार दिये गये हैं— (1) अधर्म में धर्म की संज्ञा । (3) अमार्ग में मार्ग की संज्ञा । (5) अजीव में जीव की संज्ञा । (7) असाधु में साधु की संज्ञा । (9) अमुक्त में मुक्त की संज्ञा । धर्म में अधर्म की संज्ञा । मार्ग में अमार्ग की संज्ञा । (2) (4) (6) जीव में अजीव की संज्ञा । (8) साधु में असाधु की संज्ञा । (10) मुक्त अमुक्त की संज्ञा । में 702. मिथ्यात्व के छह स्थान कौन - कौनसे हैं ? उ. (1) आत्मा नहीं है, (2) आत्मा नित्य नहीं है, (3) आत्मा सुख - दुःख काकर्ता नहीं है, (4) आत्मा कृतकर्मा का भोक्ता नहीं है, (5) निर्वाण नहीं है, (6) निर्वाण का उपाय नहीं है— ये छ: स्थान मिथ्यात्व के हैं। 703. मिथ्यात्व - मोहनीय कर्म प्रकृति की स्थिति कितनी है ? उ. जघन्य एक सागर में पल्योपम का असंख्यातवां भाग कम एवं उत्कृष्ट सत्तर करोड़ करोड़ सागर की है। 704. मिथ्यात्व मोहनीय कर्म के क्षयोपशम से जीव को क्या प्राप्त होता है ? उ. मिथ्यात्व मोहनीय कर्म के क्षयोपशम से मिथ्यादृष्टि उज्ज्वल होती है। इससे जीव कुछ पदार्थों की सत्य श्रद्धा करने लगता है। 705. मिश्र - मोहनीय कर्म किसे कहते हैं? उ. जो कर्म चित्त की स्थिति को दोलायमान रखता है— तत्त्वों में श्रद्धा नहीं होने देता और अश्रद्धा भी नहीं होने देता उसे सम्यक् मिथ्यात्व मोहनीय (मिश्र मोहनीय) कर्म कहते हैं। 706. मिश्र मोहनीय कर्म प्रकृति की स्थिति कितनी है ? उ. जघन्य एवं उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त । कर्म-दर्शन 155
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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