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________________ 435. मतिज्ञान का विरहकाल कितना है ? उ. एक व्यक्ति की अपेक्षा सम्यक्त्व से प्रतिपतित मतिज्ञान का विरहकाल जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्टतः देशोन अर्धपुद्गलपरावर्त है। 436. मतिज्ञान से शून्य कौन-कौन जीव होते हैं ? उ. एकेन्द्रिय जीव (पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु, वनस्पति), मिश्रदृष्टि, सर्वज्ञ, अ-परित, अभव्य, अ-चरम ये सब मतिज्ञान से शून्य हैं। 437. श्रुतज्ञान किसे कहते हैं? उ. शब्द, संकेत आदि के सहारे उत्पन्न या अभिव्यक्त होने वाले मतिज्ञान को ही श्रुतज्ञान कहते हैं। 438. श्रुतज्ञान के कर्ता कौन हैं? उ. श्रुतज्ञान के कर्ता केवलज्ञानी है। जिसके बल पर परोक्षज्ञानी भी प्रत्यक्षज्ञानी की भांति जीव, अजीव आदि सभी भावों को जान लेते हैं। 439. श्रुतस्थान में कौन आते हैं? उ. गणी (आचार्य), उपाध्याय, वाचनाचार्य, प्रवर्तक आदि-ये श्रुतस्थान है। 440. श्रुतग्रहण की प्रक्रिया (विधि) क्या है ? उ. श्रुतग्रहण की विधि के सात सूत्र हैं 1. शिक्षित - याद करना, कंठस्थ कर लेना । 2. स्थित — अप्रच्यूत बना लेना, हृदय में अवस्थित कर लेना । 3. चित्त — शीघ्र याद आ जाना। 4. मित—वर्ण आदि का संख्या परिमाण जान लेना । 5. परिचत — उत्क्रम या प्रतिलोम पद्धति से दोहरा लेना । 6. नामसम - अपने नाम के समान सदा स्मृति में अवस्थित रखना। 7. घोष सम—वाचनाचार्य द्वारा कृत उदात्त - अनुदात्त-स्वरित घोष के समान घोष ग्रहण करना । 441. श्रुत - अध्ययन का उद्देश्य क्या है ? उ. उत्तराध्ययन सूत्र में सूत्र - अध्ययन के चार उद्देश्य बतलाये गये हैं1. मुझे श्रुत का लाभ होगा, ज्ञान बढ़ेगा। मैं एकाग्रचित्त हो पाऊंगा। 3. मैं स्वयं को धर्म में स्थापित करूंगा। 4. मैं स्वयं धर्म में स्थापित होकर दूसरों को स्थापित करूंगा। 2. 100 कर्म-दर्शन
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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