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________________ 427. जाति - स्मृति ज्ञान किसे कहते हैं? उ. पूर्वजन्म की स्मृति को जाति - स्मृति ज्ञान कहते हैं। 428. पूर्वजन्म की स्मृति होने के क्या कारण हो सकते हैं? उ. ज्ञाताधर्मकथा में पूर्वजन्म की स्मृति होने के चार कारण निर्दिष्ट हैं— (1) मोहनीय कर्म का उपशम । (2) अध्यवसायों की शुद्धि अथवा लेश्या की शुद्धि । (3) ईहा, अपोह, मार्गणा और गवेषणा । (4) जाति - स्मृति ज्ञान को आवृत करने वाले कर्मों का क्षयोपशम । 429. जातिस्मृति ज्ञान कब उत्पन्न होता है ? उ. शुभ परिणाम और लेश्या की विशुद्धि के क्षणों में जाति - स्मृति ज्ञान उत्पन्न होता है। जाति-स्मृति ज्ञान के लिए चारित्र मोहनीय का उपशान्त होना भी आवश्यक है। 430. जाति-स्मृति ज्ञान क्या स्वतंत्र ज्ञान नहीं है ? उ. जाति - स्मृति ज्ञान स्वतंत्र नहीं है। यह मतिज्ञान का ही भेद है। 431 जाति - स्मृति कितने भवों की हो सकती है ? उ. असंज्ञी का भव बीच में न हो तो नौ जन्मों तक की स्मृति हो सकती है। 432. जाति-स्मृति ज्ञान के कितने प्रकार हैं ? उ. जाति - स्मृति ज्ञान के दो प्रकार हैं 1. सनिमित्तक—किसी बाह्य निमित्त को पाकर होने वाली पूर्वजन्म की स्मृति । जैसे वल्कलचीरी आदि । ' 2. अनिमित्तक— बिना किसी निमित्त के केवल ऐसे ही जाति - स्मृति । आवारक कर्मों के क्षयोपशम से होने वाली पूर्वजन्म की स्मृति । जैसे स्वयंबुद्ध कपील आदि । 433. मतिज्ञान का विषय क्या है ? - उ. मतिज्ञानी द्रव्य क्षेत्र - काल और भाव की अपेक्षा से सर्व द्रव्यों, क्षेत्रों, काल और भावों को जानता है देखता नहीं है। 434. मतिज्ञान का क्षेत्र कितना है ? उ. मतिज्ञान का क्षेत्र है- ऊर्ध्वलोक में सात रज्जू तथा अधोलोक में पांच रज्जू । 1. देखें कथा सं. 10 कर्म-दर्शन 99
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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