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________________ भगवती सूत्र श. १ : उ. ३ : सू. १५६-१६५ किन्तु उदीरणायोग्य कर्म का वेदन नहीं करता । ४. उदय के अनन्तर पश्चात्कृत कर्म का वेदन नहीं करता । १५७. भन्ते! जीव उदीर्ण कर्म का जो वेदन करता है, वह क्या उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकार - पराक्रम से करता है ? अथवा अनुत्थान, अकर्म, अबल, अवीर्य और अपुरुषकारपराक्रम से करता है ? गौतम! जीव उदीर्ण कर्म का जो वेदन करता है, वह उत्थान से भी, कर्म से भी, बल से भी, वीर्य से भी और पुरुषकार - पराक्रम से भी करता है, किन्तु अनुत्थान, अकर्म, अबल, अवीर्य और अपुरुषकारपराक्रम से नहीं करता । १५८. ऐसा होने पर उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकार - पराक्रम का अस्तित्व सिद्ध होता है । १५९. भन्ते ! क्या जीव अपने आप ही निर्जरा करता है? अपने आप ही गर्हा करता है ? हां, गौतम! जीव अपने आप ही निर्जरा करता है, अपने आप ही गर्हा करता है । १६०. भन्ते ! जीव अपने आप ही जो निर्जरा करता है, अपने आप जो गर्हा करता है, वह क्या १. उदीर्ण की निर्जरा करता है? २. अनुदीर्ण की निर्जरा करता है ? ३. अनुदीर्ण किन्तु उदीरणायोग्य कर्म की निर्जरा करता है ? ४. अथवा उदय के अनन्तर पश्चात्कृत (भुक्त) कर्म की निर्जरा करता है ? गौतम ! १. जीव उदीर्ण की निर्जरा नहीं करता । २. अनुदीर्ण की निर्जरा नहीं करता। ३. अनुदीर्ण किन्तु उदीरणायोग्य कर्म की निर्जरा नहीं करता । ४. उदय के अनन्तर पश्चात्कृत कर्म की निर्जरा करता है । १६१. भन्ते ! जीव उदय के अनन्तर पश्चात्कृत कर्म की जो निर्जरा करता है, वह क्या उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकार - पराक्रम से करता है अथवा अनुत्थान, अकर्म, अबल, अवीर्य और अपुरुषकारपराक्रम से करता है ? गौतम ! जीव उदय के अनन्तर पश्चात्कृत कर्म की जो निर्जरा करता है, वह उत्थान से भी, कर्म से भी, बल से भी, वीर्य से भी और पुरुषकारपराक्रम से भी करता है, किन्तु अनुत्थान, अकर्म, अबल, अवीर्य और अपुरुषकार - पराक्रम से नहीं करता । १६२. ऐसा होने पर उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकार पराक्रम का अस्तित्व सिद्ध होता है । १६३. भन्ते ! क्या नैरयिक- जीव कांक्षामोहनीय कर्म का वेदन करते हैं । जैसे समुच्चय में जीव की वक्तव्यता है, वैसे ही नैरयिक जीवों से स्तनितकुमार तक वक्तव्य हैं । १६४. भन्ते ! क्या पृथ्वीकायिक-जीव कांक्षामोहनीय कर्म का वेदन करते हैं ? हां, वेदन करते हैं। १६५. भन्ते ! पृथ्वीकायिक- जीव कांक्षामोहनीय कर्म का वेदन कैसे करते हैं ? २२
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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