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________________ भगवती सूत्र श. १ : उ. ३ : सू. १४९-१५६ उत्थान, कर्म, बल, वीर्य, पुरुषकार-पराक्रम से करता है अथवा अनुत्थान, अकर्म, अबल, अवीर्य, अपुरुषकारपराक्रम से करता है? गौतम! जीव अनुदीर्ण किन्तु उदीरणायोग्य कर्म की जो उदीरणा करता है, वह उत्थान से भी, कर्म से भी. बल से भी. वीर्य से भी और परुषकार-पराक्रम से भी करता है, किन्तु अनत्थान. अकर्म, अबल, अवीर्य और अपुरुषकारपराक्रम से नहीं करता। १५०. ऐसा होने पर उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकार-पराक्रम का अस्तित्व सिद्ध होता १५१. भन्ते! क्या जीव अपने आप ही उपशमन करता है? अपने आप ही गर्दा करता है? अपने आप ही संवरण करता है? हां, गौतम! जीव अपने आप ही उपशमन करता है, अपने आप ही गर्दा करता है, अपने आप ही संवरण करता है। १५२. भन्ते! जीव अपने आप ही जो उपशमन करता है, अपने आप ही जो गर्दा करता है, अपने आप ही जो संवरण करता है, वह क्या-१. उदीर्ण का उपशमन करता है? २. अनुदीर्ण का उपशमन करता है? ३. अनुदीर्ण किन्तु उदीरणायोग्य कर्म का उपशमन करता है? ४. अथवा उदय के अनन्तर पश्चात्कृत (भुक्त) कर्म का उपशमन करता है। गौतम! जीव १. उदीर्ण का उपशमन नहीं करता। २. अनुदीर्ण का उपशमन करता है। ३. अनदीर्ण किन्त उदीरणायोग्य कर्म का उपशमन नहीं करता। ४. उदय के अनन्तर पश्चातकत कर्म का उपशमन नहीं करता। १५३. भन्ते! जीव अनुदीर्ण कर्म का जो उपशमन करता है, वह क्या उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकार-पराक्रम से करता है? अथवा अनुत्थान, अकर्म, अबल, अवीर्य और अपुरुषकार-पराक्रम से करता है? गौतम! जीव अनुदीर्ण कर्म का उपशमन उत्थान से भी, कर्म से भी, बल से भी वीर्य से भी और पुरुषकार-पराक्रम से भी करता है, किन्तु अनुत्थान, अकर्म, अबल, अवीर्य और अपुरुषकार-पराक्रम से नहीं करता। १५४. ऐसा होने पर उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकार-पराक्रम का अस्तित्व सिद्ध होता १५५. भन्ते! क्या जीव अपने आप ही वेदन करता है? अपने आप ही गर्दा करता है? हां, गौतम! जीव अपने आप ही वेदन करता है और अपने आप ही गर्दा करता है। १५६. भन्ते! जीव अपने आप ही जो वेदन करता है और अपने आप ही जो गर्दा करता है, वह क्या-१. उदीर्ण का वेदन करता है? २. अनुदीर्ण का वेदन करता है? ३. अनुदीर्ण किन्तु उदीरणायोग्य कर्म का वेदन करता है? ४. अथवा उदय के अनन्तर पश्चात्कृत (भुक्त) कर्म का वेदन करता है? गौतम! जीव १. उदीर्ण का वेदन करता है। २. अनुदीर्ण का वेदन नहीं करता। ३. अनुदीर्ण २१
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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