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________________ भगवती सूत्र श. १ : उ. ३,४ : सू. १६५-१७४ गौतम! उन जीवों के तर्क, संज्ञा, प्रज्ञा, मन और वचन नहीं होते। हम कांक्षा-मोहनीय कर्म का वेदन करते हैं ऐसा उन्हें बोध नहीं होता, फिर भी वे वेदन करते हैं। १६६. भन्ते! क्या वही सत्य और निःशंक है, जो जिनों (अर्हतों) द्वारा प्रवेदित है? हां, गौतम ! वही सत्य और निःशंक है, जो जिनों द्वारा प्रवेदित है। शेष आलापक-इससे उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकार-पराक्रम का अस्तित्व सिद्ध होता है वहां तक वक्तव्य है। १६७. अप्काय आदि एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय का आलापक पृथ्वीकायिक-जीवों की भांति वक्तव्य है। १६८. तिर्यक्-पञ्चेन्द्रिय-जीवों से वैमानिक-देवों तक का आलापक समुच्चय जीव की भांति वक्तव्य है। १६९. भन्ते! क्या श्रमण निर्ग्रन्थ भी कांक्षामोहनीय-कर्म का वेदन करते हैं? हां, करते हैं। १७०. भन्ते! श्रमण निर्ग्रन्थ कांक्षामोहनीय-कर्म का वेदन कैसे करते हैं? गौतम! उन-उन ज्ञानान्तर, दर्शनान्तर, चारित्रान्तर, लिंगांतर, प्रवचनान्तर, प्रवचनी-अन्तर, कल्पान्तर, मार्गान्तर, मतान्तर, भंगान्तर, नयान्तर, नियमान्तर और प्रमाणान्तर से वे शंकित, कांक्षित, विचिकित्सिक, भेद-समापन्न और कलुष-समापन्न हो जाते हैं। इस प्रकार श्रमण निर्ग्रन्थ कांक्षामोहनीय-कर्म का वेदन करते हैं। १७१. भन्ते! क्या वही सत्य और निःशंक है, जो जिनों द्वारा प्रवेदित है? हां, गौतम ! वही सत्य और निःशंक है, जो जिनों द्वारा प्रवेदित है। १७२. इस प्रकार यावत् उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकार-पराक्रम का अस्तित्व सिद्ध होता है। १७३. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है। चौथा उद्देशक कर्म-पद १७४. भन्ते! कर्म-प्रकृतियां कितनी प्रज्ञप्त हैं? गौतम! कर्म-प्रकृतियां आठ प्रज्ञप्त हैं। कर्मप्रकृति (पण्णवणा, २३) के प्रथम उद्देशक का अनुभाग समाप्त हुआ है-इस अंश तक यह ज्ञातव्य है। संग्रहणी गाथा कर्म-प्रकृतियां कितनी हैं? उनका बन्ध कैसे करता है? उनका बन्ध कितने स्थानों (कारणों) से होता है? कितनी कर्म-प्रकृतियों का वेदन होता है? किस कर्म का कितने प्रकार का अनुभाग (रस-विपाक) होता है? २३
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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