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________________ भगवती सूत्र श. ११ : उ. ११ : सू. १४७-१५३ बहु प्रतिपूर्ण नव मास साढे सात रात-दिन के व्यतिक्रांत होन पर यावत् सुरूप पुत्र को जन्म दिया है। इसलिए हम देवानुप्रिय को प्रिय निवेदन करती हैं। आपका प्रिय हो । १४८ अंग - प्रतिचारिका से इस अर्थ को सुनकर, अवधारण कर, राजा बल हृष्ट-तुष्ट चित्त वाला, आनंदित, नंदित, प्रीतिपूर्ण मन वाला, परम सौमनस्य युक्त और हर्ष से विकस्वर हृदय वाला हो गया। उसका शरीर धारा से आहत कदंब के सुरभि कुसुम की भांति पुलकित शरीर एवं उच्छूसित रोम कूप वाला हो गया । उसने उन अंग प्रतिचारिकाओं को मुकुट को छोड़ कर धारण किये हुए शेष सभी आभूषण दे दिए। देकर श्वेत-रजतमय विमल जल से भरी हुई झारी को ग्रहण किया। ग्रहण कर अंग प्रतिचारिकाओं के मस्तक को प्रक्षालित किया । प्रक्षालित कर दासत्व से मुक्त कर जीवन निर्वाह के योग्य विपुल प्रीतिदान दिया । प्रीतिदान देकर सत्कार सम्मान किया। सत्कार-सम्मान कर प्रतिविसर्जित किया । १४९. बल राजा ने कौटुंबिक पुरुषों को बुलाया, बुलाकर इस प्रकार कहा— हे देवानुप्रिय ! हस्तिनापुर नगर में शीघ्र ही चारक - शोधन - बंदियों का विमोचन करो, विमोचन कर मान- उन्मान (तौल - माप) में वृद्धि करो, वृद्धि कर हस्तिनापुर नगर के भीतरी और बाहरी क्षेत्र को सुगंधित जल से सींचो, झाड़-बुहार कर गोबर का लेप करो यावत् प्रवर सुरभि वाले गंध चूर्णों से सुगंधित गंधवर्तिका के समान करो, कराओ, कर और कराकर यूप- सहस्र और चक्र - सहस्र की पूजा और महामहिमा युक्त उत्सव करो। उत्सव कर मेरी आज्ञा मुझे प्रत्यर्पित करो । १५०. वे कौटुम्बिक पुरुष बल राजा के इस प्रकार कहने पर हृष्ट-तुष्ट हो गए यावत् बल राजा की आज्ञा बल राजा को प्रत्यर्पित की। १५१. वह बल राजा जहां व्यायाम शाला थी, वहां आया, वहां आकर पूर्ववत् यावत् स्नानघर से प्रतिनिष्क्रमण किया। प्रतिनिष्क्रमण कर राजा बल ने निर्देश दिया- दस दिवस के लिए कुल मर्यादा के अनुरूप पुत्र जन्म महोत्सव मनाया जाए- प्रजा से शुल्क और भूमि का कर्षण न करें, क्रय-विक्रय का निषेध करने के कारण देने और मापने की प्रणाली स्थगित हो गई है। सुभट प्रजा के घर में प्रवेश न करें। राज दण्ड से प्राप्त द्रव्य और कुदंड - अपराधी आदि से प्राप्त दंड द्रव्य न लें। ऋण धारण करने वालों को ऋण मुक्त करें। गणिका आदि के द्वारा प्रवर नाटक किए जाएं, वहां अनेक ताल बजाने वालों का अनुचरण होता रहे, नगर में सतत मृदंग बजते रहें, अम्लान पुष्प मालाएं (तोरण द्वारों आदि पर ) बांधी जाएं। इस प्रकार प्रमुदित और खुशियों से झूमते हुए नागरिक और जनपद वासी पुत्र जन्म उत्सव में सहभागी बनें। १५२. कुल मर्यादा के अनुरूप चल रहे दसाह्निक महोत्सव में बल राजा बल ने सैकड़ों, हजारों, लाखों द्रव्यों से याग कार्य कराए। दान और भाग (विवक्षित द्रव्य का अंश) दिया, दिलवाया। सैकड़ों, हजारों, लाखों लोगों से उपहार को ग्रहण करता हुआ, स्वीकार करता हुआ, स्वीकार करवाता हुआ विहरण कर रहा था। १५३. बालक के माता-पिता ने प्रथम दिन कुल मर्यादा के अनुरूप महोत्सव मनाया। तीसरे दिन चंद्र-सूर्य के दर्शन कराए। छट्ठे दिन जागरण किया। इस प्रकार ग्यारह दिन व्यतिक्रांत होने ४३१
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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