SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 502
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती सूत्र श. ११ : उ. ११ : सू. १५३-१५८ पर अशुचिजात - कर्म से निवृत्त होकर बारहवें दिन के आने पर विपुल अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य तैयार कराए, करा कर मित्र, ज्ञाति, निजक, स्वजन, संबंधी, परिजन, राजा और क्षत्रियों को आमंत्रित किया, आमंत्रित करने के पश्चात् स्नान किया, पूर्ववत् यावत् सत्कार-सम्मान किया, सत्कार सम्मान कर उन मित्र, ज्ञाति, निजक, स्वजन, संबंधी, परिजन, राजा और क्षत्रियों के सामने पितामह, प्रपितामह, प्रप्रपितामह आदि बहुपुरुष की परंपरा से रूढ, कुलानुरूप, कुल-सदृश, कुल संतान के तंतु का संवर्द्धन करने वाला, इस प्रकार का गुण-युक्त गुण-निष्पन्न नामकरण किया- क्योंकि यह बालक राजा बल का पुत्र और प्रभावती देवी का आत्मज है, इसलिए इसका नाम होना चाहिए - 'महाबल - महाबल।' तब उसके माता-पिता ने उस बालक का नाम महाबल किया । १५४. बालक महाबल पांच धायों के द्वारा परिगृहीत (जैसे क्षीर-धातृ) इस प्रकार दृढ प्रतिज्ञ की भांति वक्तव्यता (रायपसेणीय, सूत्र ८०५) यावत् निर्वात और व्याघात रहित स्थान में सुखपूर्वक बढने लगा। १५५. उस बालक महाबल के माता-पिता ने अनुक्रम से कुल-मर्यादा के अनुरूप चंद्र-सूर्य के दर्शन कराए, जागरण, नामकरण, भूमि पर रेंगना, पैरों से चलना, भोजन प्रारंभ करना, ग्रास को बढाना, संभाषण सिखाना, कर्णवेधन, संवत्सर - प्रतिलेखन (वर्षगांठ मनाना) चूड़ा धारण करना, उपनयन-संस्कार ( कलादि ग्रहण) और अन्य अनेक गर्भाधान, जन्म- महोत्सव आदि १५६ . माता-पिता ने महाबल कुमार को सातिरेक आठ वर्ष का जानकर शोभन तिथि, करण, नक्षत्र और मूहूर्त में कलाचार्य के पास भेजा। इस प्रकार दृढप्रतिज्ञ की भांति वक्तव्यता यावत् भोग का उपभोग करने में समर्थ हुआ । १५७. महाबल कुमार बाल्यावस्था को पार कर यावत् भोग के उपभोग में समर्थ है, यह जान कर माता-पिता ने आठ प्रासाद - अवतंसक बनवाए - अत्यंत ऊंचे, हंसते हुए श्वेतप्रभा पटल की भांति श्वेत वेदिका - संयुक्त-रायपसेणइय (सू. १३७) की भांति वक्तव्यता यावत् प्रतिरूप थे। उन आठ प्रासाद अवतंसक के बहु-मध्य भाग में एक महान् भवन बनवाया - अनेक सैकड़ों स्तंभों पर अवस्थित था, (रायपसेणइय, सूत्र ३२) की भांति वर्णक–प्रेक्षाघर मंडप यावत् प्रतिरूप था । १५८. उस महाबल कुमार ने किसी समय शोभन तिथि, करण, दिवस, नक्षत्र और मुहूर्त में स्नान किया, बलि-कर्म किया, कौतुक, मंगल और प्रायश्चित्त किया, सर्व अलंकारों से विभूषित हुआ। सौभाग्यवती स्त्रियों ने अभ्यंगन, स्नान, गीत, वादित आदि से प्रसाधन तथा आठ अंगों पर तिलक किए, कंकण के रूप में लाल डोरे को हाथ में बांधा, दधि, अक्षत आदि मंगल एवं मंगल गीत आशीर्वाद के रूप में गाए, प्रवर कौतुक एवं मंगल उपचार के रूप में शांति कर्म आदि उपनय किए। माता-पिता ने एक दिन समान जोड़ी वाली, समान त्वचा वाली, समान वय वाली, समान लावण्य, रूप, यौवन- गुणों से उपेत, विनीत, कौतुक, मंगल एवं प्रायश्चित्त की हुई, सदृश राजकुलों से आई हुई आठ प्रवर राजकन्याओं के साथ महाबल कुमार का पाणिग्रहण करवाया । ४२०
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy