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________________ श. ८ : उ. २ : सू. १४९-१५८ भगवती सूत्र १४९. भंते! आभिनिबोधिक-ज्ञान-लब्धि वाले जीव क्या ज्ञानी हैं? अज्ञानी है? । __ गौतम! ज्ञानी हैं, अज्ञानी नहीं हैं। कुछ दो ज्ञान वाले हैं, यावत् चार ज्ञान की भजना है। १५०. भंते! आभिनिबोधिक-ज्ञान के अलब्धिक-जीव क्या ज्ञानी हैं? अज्ञानी हैं? गौतम! वे ज्ञानी भी हैं, अज्ञानी भी हैं। जो ज्ञानी हैं वे नियमतः एक ज्ञान वाले–केवल-ज्ञान वाले हैं। जो अज्ञानी हैं वे कुछ दो अज्ञान वाले हैं। तीन अज्ञान की भजना है। इसी प्रकार श्रुत-ज्ञान-लब्धि वाले जीवों की वक्तव्यता। श्रुत-ज्ञान के अलब्धिक जीवों की वक्तव्यता आभिनिबोधिक-ज्ञान के अलब्धिक-जीवों की भांति ज्ञातव्य है। १५१. अवधिज्ञान-लब्धि वाले जीवों की पृच्छा। गौतम! वे ज्ञानी हैं, अज्ञानी नहीं हैं। कुछ तीन ज्ञान वाले हैं, कुछ चार ज्ञान वाले हैं। जो तीन ज्ञान वाले हैं वे आभिनिबोधिक-ज्ञान, श्रुत-ज्ञान और अवधि-ज्ञान वाले हैं। जो चार ज्ञान वाले हैं वे आभिनिबोधिक-ज्ञान, श्रुत-ज्ञान, अवधि-ज्ञान और मनःपर्यव-ज्ञान वाले हैं। १५२. अवधि-ज्ञान के अलब्धिकों की पृच्छा। गौतम! वे ज्ञानी भी हैं, अज्ञानी भी हैं। इस प्रकार अवधि-ज्ञान को छोड़कर चार ज्ञान और तीन अज्ञान की भजना है। १५३. मनःपर्यवज्ञान-लब्धि वालों की पृच्छा। गौतम! वे ज्ञानी हैं, अज्ञानी नहीं हैं। उनमें कुछ तीन ज्ञान वाले हैं, कुछ चार ज्ञान वाले हैं। जो तीन ज्ञान वाले हैं वे आभिनिबोधिक-ज्ञान, श्रुत-ज्ञान और मनःपर्यव-ज्ञान वाले हैं। जो चार ज्ञान वाले हैं वे आभिनिबोधिक-ज्ञान, श्रुत-ज्ञान, अवधि-ज्ञान और मनःपर्यव-ज्ञान वाले १५४. मनःपर्यव-ज्ञान के अलब्धिकों की पृच्छा। गौतम! वे ज्ञानी भी हैं, अज्ञानी भी हैं। मनःपर्यव-ज्ञान को छोड़कर चार ज्ञान और तीन अज्ञान की भजना है। १५५. भंते! केवल-ज्ञान-लब्धि वाले जीव क्या ज्ञानी हैं? अज्ञानी हैं? गौतम! वे ज्ञानी हैं, अज्ञानी नहीं। नियमतः एक ज्ञान-केवल-ज्ञान वाले हैं। १५६. केवल-ज्ञान के अलब्धिकों की पृच्छा। गौतम! वे ज्ञानी भी हैं, अज्ञानी भी हैं। केवल-ज्ञान को छोड़कर चार ज्ञान और तीन अज्ञान की भजना है। १५७. अज्ञान-लब्धि वालों की पृच्छा। गौतम! वे ज्ञानी नहीं हैं, अज्ञानी हैं। तीन अज्ञान की भजना है। १५८. अज्ञान के अलब्धिकों की पृच्छा। गौतम! ज्ञानी हैं, अज्ञानी नहीं हैं। पांच ज्ञान की भजना है। जैसी अज्ञान के लब्धिकों और अलब्धिकों की वक्तव्यता है वैसी ही मति-अज्ञान और श्रुत-अज्ञान के लब्धिकों और २८२
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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