SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 353
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती सूत्र श. ८ : उ. २ : सू. १५८-१६५ अलब्धिकों की वक्तव्यता ज्ञातव्य है। विभंग-ज्ञान-लब्धि वाले के नियमतः तीन अज्ञान होते हैं। उसके अलब्धिकों के पाच ज्ञान की भजना है, दो अज्ञान नियमतः होते हैं। दर्शन की अपेक्षा १५९. भंते! दर्शन-लब्धि वाले जीव क्या ज्ञानी हैं? अज्ञानी हैं? गौतम! ज्ञानी भी हैं, अज्ञानी भी हैं। पांच ज्ञान और तीन अज्ञान की भजना है। १६०. भंते! दर्शन के अलब्धिक जीव क्या ज्ञानी हैं? अज्ञानी हैं? गौतम! उसके अलब्धिक नहीं हैं। सम्यग्-दर्शन-लब्धि वालों के पांच ज्ञान की भजना है। उसके अलब्धिकों के तीन अज्ञान की भजना है। मिथ्या-दर्शन-लब्धि वालों के तीन अज्ञान की भजना है। उसके अलब्धिकों के पांच ज्ञान और तीन अज्ञान की भजना है। सम्यग्मिथ्या-दर्शन-लब्धि वाले और उसके अलब्धिकों की वक्तव्यता मिथ्या-दर्शन-लब्धि वाले और उसके अलब्धिकों की भांति ज्ञातव्य है। चरित्र की अपेक्षा १६१. भंते! चरित्र-लब्धि वाले जीव क्या ज्ञानी हैं? अज्ञानी हैं? गौतम! पांच ज्ञान की भजना है। उस (चरित्र) के अलब्धिकों के मनःपर्यव-ज्ञान को छोड़कर चार ज्ञान और तीन अज्ञान की भजना है। १६२. भंते! सामायिक-चरित्र की लब्धि वाले जीव क्या ज्ञानी हैं? अज्ञानी हैं? गौतम! ज्ञानी हैं केवल-ज्ञान को छोड़कर चार ज्ञान की भजना है। उस (सामायिक-चरित्र) के अलब्धिकों के पांच ज्ञान और तीन अज्ञान की भजना है। इस प्रकार जैसी सामायिक-चरित्र की लब्धि वाले और अलब्धिकों की वक्तव्यता वैसी ही यावत् यथाख्यात-चरित्र की लब्धिवाले और अलब्धिकों की वक्तव्यता ज्ञातव्य है। केवल इतना विशेष है-यथाख्यात-चरित्र की लब्धि वालों के पांच ज्ञान की भजना है। चरित्राचरित्र की अपेक्षा १६३. भंते! चरित्राचरित्र की लब्धि वाले जीव क्या ज्ञानी है ? अज्ञानी हैं? गौतम! वे ज्ञानी हैं, अज्ञानी नहीं हैं। उनमें कुछ दो ज्ञान वाले और कुछ तीन ज्ञान वाले हैं। जो दो ज्ञान वाले हैं वे आभिनिबोधिक-ज्ञान और श्रुत-ज्ञान वाले हैं। जो तीन ज्ञान वाले हैं वे आभिनिबोधिक-ज्ञान, श्रुत-ज्ञान और अवधि-ज्ञान वाले हैं। उस (चरित्राचरित्र) की अलब्धिकों के पांच ज्ञान और तीन अज्ञान की भजना है। दान आदि की अपेक्षा १६४. दान-लब्धि वालों के पांच ज्ञान और तीन अज्ञान की भजना है। १६५. दान-लब्धि के अलब्धिकों की पृच्छा। गौतम! ज्ञानी हैं, अज्ञानी नहीं हैं। नियमतः एक ज्ञानी–केवल-ज्ञानी हैं। इसी प्रकार यावत् २८३
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy