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________________ भगवती सूत्र ___ श. ७ : उ. ९ : सू. १९८-२०३ समान वय वाला और समान युद्धोपयोगी साधन सामग्री वाला। १९९. उस पुरुष ने नागनप्तृक वरुण से इस प्रकार कहा-हे नागनप्तृक वरुण! प्रहार करो। नागनप्तृक वरुण! प्रहार करो। २००. नागनप्तृक वरुण ने उस पुरुष से इस प्रकार कहा-देवानुप्रिय! जो पहले मुझ पर प्रहार नहीं करता, उस पर मैं प्रहार नहीं कर सकता। तू ही पहले मुझ पर प्रहार करो। २०१. नागनप्तृक वरुण के द्वारा ऐसा कहने पर वह पुरुष तत्काल आवेश में आ गया, रुष्ट हो गया, कुपित हो गया। उसका रूप रौद्र बन गया। वह क्रोध की अग्नि से प्रदीप्त हो उठा। इस अवस्था में वह धनुष हाथ में लेता है, ले कर बाण को धनुष पर चढ़ाता है, चढ़ाकर स्थान (वैशाख नामक युद्ध की मुद्रा) में खड़ा होता है। खड़ा होकर बाण को कान की लंबाई तक खींचता है, खींच कर वह नागनप्तृक वरुण पर गाढ प्रहार करता है। २०२. नागनप्तृक वरुण उस प्रतिरथी पुरुष के द्वारा गाढ़ प्रहार किये जाने पर तत्काल आवेश में आ गया, रुष्ट हो गया, कुपित हो गया। उसका रूप रौद्र बन गया। वह क्रोध की अग्नि से प्रदीप्त हो उठा। इस अवस्था में वह धनुष हाथ में लेता है, लेकर बाण को धनुष पर चढ़ाता है, चढ़ाकर बाण को कान की लम्बाई तक खींचता है, खींच कर उस पुरुष को कूट के प्रहार की भांति एक ही प्रहार में जीवन-शून्य बना देता है। २०३. नागनप्तृक वरुण उस पुरुष के द्वारा गाढ प्रहार किये जाने पर प्राण, बल, वीर्य, पुरुषकार और पराक्रम रहित हो गया। शरीर अब टिक नहीं पाएगा, यह चिन्तन कर घोड़ों की लगाम खींची, खींच कर रथ को मोड़ा, मोड़ कर रथमुसल संग्रामभूमि से बाहर आ गया, बाहर आ कर एकान्त भूमिभाग में पहुंचा, पहुंचकर घोड़ों की लगाम को खींचा, खींच कर रथ को ठहराया, ठहरा कर रथ से नीचे उतरा, उतरकर घोड़ों को मुक्त कर दिया, मुक्तकर उन्हें विसर्जित कर दिया, विसर्जित कर दर्भ का बिछौना किया, बिछौना कर उस पर चला गया। जाकर पूर्व की ओर मुंह कर पर्यंकासन में बैठ दोनों हथेलियों से निष्पन्न सम्पुट वाली दस-नखात्मक अंजलि को सिर के सम्मुख घुमाकर भाल पर टिका कर इस प्रकार बोला-'नमस्कार हो अर्हत् भगवान को यावत् जो सिद्धगति नामक स्थान को प्राप्त हो चुके हैं, नमस्कार हो आदिकर्ता श्रमण भगवान महावीर को यावत् जो सिद्धिगति नामक स्थान को प्राप्त करने के इच्छुक हैं, जो मेरे धर्माचार्य और धर्मोपदेशक हैं। वहां विराजित भगवान यहां स्थित मझे देखें, ऐसा सोच कर वह वन्दन-नमस्कार करता है. वन्दन-नमस्कार कर वह इस प्रकार बोला-'मैंने पहले भी श्रमण भगवान् महावीर के पास जा कर जीवनभर के लिए स्थूल प्राणातिपात यावत् स्थूल परिग्रह का प्रत्याख्यान किया था। इस समय भी मैं श्रमण भगवान् महावीर के पास जीवनभर के लिए सर्व प्राणातिपात यावत् मिथ्या-दर्शन-शल्य का प्रत्याख्यान करता हूं। मैं जीवन- भर के लिए सर्व अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य इस चार प्रकार के आहार का प्रत्याख्यान करता हूं। यद्यपि मेरा यह शरीर मुझे इष्ट, कान्त, प्रिय यावत् वात, पित्त, श्लेष्मा और सन्निपातजनित बहुत से रोग और आतंक तथा परीषह और उपसर्ग इसका स्पर्श न करें, इसलिए इसको भी मैं अन्तिम उच्छ्वास-निःश्वास तक छोड़ता हूं, ऐसा कर कवच खोला, खोलकर बाण को निकाला, निकाल कर आलोचना की, २५३
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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