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________________ भगवती सूत्र श. ७ : उ. ९ : सू. १९३-१९८ देव के रूप में उपपन्न होते हैं। जो ऐसा कहते हैं वे मिथ्या कहते हैं। गौतम! मैं ऐसा आख्यान करता हूं यावत् प्ररूपणा करता हूं - गौतम ! उस काल और उस समय में वैशाली नाम की नगरी थी-वर्णन । उस वैशाली नगरी में नागनप्तृक (नाग का धेवता) वरुण रहता था - वह जीव- अजीव को सम्पन्न यावत् अपरिभवनीय था । वह श्रमणों की उपासना करने वाला, जानने वाला, यावत् श्रमण-निर्ग्रन्थों को प्रासुक और एषणीय अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य, वस्त्र, पात्र, कंबल, पाद- प्रोञ्छन, पीठ-फलक, शय्यासंस्तारक और औषध - भैषध - भैषज्य का दान देने वाला, निरन्तर बेले- बेले के तपः कर्म द्वारा अपने आपको भावित करता हुआ विहरण कर रहा है । १९४. युद्ध का प्रसंग उपस्थित होने पर राजाभियोग, गणाभियोग, बलाभियोग के द्वारा नागनप्तृक वरुण को रथमुसल संग्राम में जाने की आज्ञा प्राप्त हुई। उस दिन वह बेला (दो दिन का उपवास) की तपस्या में था । उसने तेला (तीन दिन का उपवास) कर लिया, तप सम्पन्न कर कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया, बुलाकर कहा- देवानुप्रियो ! शीघ्र ही चार घण्टाओं वाले अश्वरथ को जोत कर उपस्थित करो; अश्व, गज, रथ और प्रवर योद्धा से युक्त चतुरंगिणी सेना को सन्नद्ध करो, सन्नद्ध कर शीघ्र ही मेरी इस आज्ञा का प्रत्यर्पण करो । १९५. कौटुम्बिक पुरुषों ने यावत् स्वीकार कर शीघ्र ही छत्र और ध्वजायुक्त यावत् चार घण्टाओं वाले अश्वरथ को जोत कर उपस्थित किया तथा अश्व, गज, रथ और प्रवर योद्धा से युक्त चतुरंगिणी सेना को सन्नद्ध किया, सन्नद्ध कर जहां नागनप्तृक वरुण था वहां आए, आकर यावत् उस आज्ञा का प्रत्यर्पण किया । १९६. नागननप्तृक वरुण जहां मज्जन घर है वहां आया, आ कर मज्जन- घर में अनुप्रवेश किया, अनुप्रवेश कर उसने स्नान किया, बलिकर्म किया, कौतुक (तिलक आदि), मंगल (दधि, अक्षत आदि) और प्रायश्चित्त किया; सब अलंकारों से विभूषित हुआ, लोह - कवच को धारण किया, कटसरैया के फूलों से बनी मालाओं से युक्त छत्र धारण किया। अनेक गणनायक, दण्डनायक, राजे, ईश्वर, तलवर (कोटवाल), माडम्बिक, कौटुम्बिक, इभ्य, श्रेष्ठी, सेनापति, सार्थवाह, दूत और सन्धिपालों के साथ उनसे घिरा हुआ मज्जनघर से बाहर निकला, निकल कर जहां बाहरी उपस्थानशाला है, जहां चार घण्टाओं वाला अश्वरथ है, वहां आया। आकर चार घण्टाओं वाले अश्वरथ पर आरूढ़ हुआ, आरूढ़ हो कर अश्व, गज, रथ और प्रवर योद्धा से युक्त चतुरंगिणी सेना से परिवृत, महान् सुभटों के सुविस्तृत वृन्द से परिक्षिप्त होकर जहां रथमुसल- संग्राम की भूमि थी वहां आया। आकर रथमुसल-संग्राम में उतर गया । १९७. नागनप्तृक वरुण ने रथमुसल-संग्राम में उतरने के साथ-साथ इस प्रकार का अभिग्रह स्वीकार किया - रथमुसल संग्राम करते समय जो मुझ पर पहले प्रहार करता है उस पर मैं प्रहार करूंगा, दूसरों पर प्रहार नहीं करूंगा। इस प्रकार का अभिग्रह स्वीकार किया, स्वीकार कर रथमुसल - संग्राम में संलग्न हो गया। १९८. वह नागनप्तृक वरुण रथमुसल-संग्राम में युद्ध कर रहा था, उस समय एक रथारोही पुरुष प्रतिरथी के रूप में उसके सामने आया जो उसके जैसा ही लग रहा था - समान त्वचा वाला, २५२
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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