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________________ भगवती सूत्र श. ७ : उ. १ : सू. २२,२४ करता है, गौतम ! वह पान-भोजन संयोजना-दोष से दूषित है। गौतम! स-अंगार, सधूम और संयोजन-दोष से दूषित पान-भोजन का यह अर्थ प्रज्ञप्त है। २३. भन्ते! अङ्गार-मुक्त, धूम-मुक्त और संयोजना-दोष-विप्रमुक्त पान-भोजन का क्या अर्थ प्रज्ञप्त है? गौतम! जो निर्ग्रन्थ अथवा निर्ग्रन्थी अभिलषणीय और एषणीय अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य का प्रतिग्रहण कर उसमें अमूर्च्छित, अगृद्ध, अग्रथित और अनासक्त हो कर आहार करता है, गौतम! यह अङ्गार-मुक्त पान-भोजन है। जो निर्ग्रन्थ अथवा निर्ग्रन्थी अभिलषणीय और एषणीय अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य का प्रतिग्रहण कर महती अप्रीति तथा क्रोध-जनित कलेश न करता हुआ आहार करता है, गौतम! वह धूम-मुक्त पान-भोजन है। जो निर्ग्रन्थ अथवा निर्ग्रन्थी अभिलषणीय और एषणीय अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य का प्रतिग्रहण कर जैसा मिला है उसे उसी रूप में खाता है, गौतम! वह संयोजना-दोष-विप्रमुक्त पान-भोजन है। गौतम! अङ्गार-मुक्त, धूम-मुक्त और संयोजना-दोष-विप्रमुक्त पान-भोजन का क्या यह अर्थ प्रज्ञप्त है। २४. भन्ते! क्षेत्रातिक्रान्त, कालातिक्रानत, मार्गातिक्रान्त और प्रमाणातिक्रान्त पान-भोजन का क्या अर्थ है। गौतम! जो निर्ग्रन्थ अथवा निर्ग्रन्थी अभिलषणीय और एषणीय अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य का सूर्योदय से पहले प्रतिग्रहण कर सूरज के उगने पर आहार करता है, गौतम! यह क्षेत्रातिक्रान्त पान-भोजन है। जो निर्ग्रन्थ अथवा निर्ग्रन्थी अभिलषणीय और एषणीय अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य का प्रथम प्रहर में प्रतिग्रहण कर अन्तिम प्रहर आने पर आहार करता है, गौतम! यह कालातिक्रान्त पान-भोजन है। जो निर्ग्रन्थ अथवा निर्ग्रन्थी अभिलषणीय और एषणीय अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य का प्रतिग्रहण कर आधे योजन (दो कोश) की मर्यादा का अतिक्रमण कर आहार करता है, गौतम! यह मार्गातिक्रान्त पान-भोजन है। जो निर्ग्रन्थ अथवा निर्ग्रन्थी अभिलषणीय और एषणीय अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य का प्रतिग्रहण कर मुर्गी के अंडे के प्रमाण जितने बत्तीस कवल से अधिक आहार करता है, गौतम! यह प्रमाणातिक्रान्त पान-भोजन है। मुर्गी के अण्डे जितने आठ कवल का आहार करने पर अल्पाहारी कहलाता है, मुर्गी के अण्डे जितने बारह कवल का आहार करने वाला अपार्द्ध-अवमोदरिक कहलाता है, मुर्गी के अण्डे जितने सोलह कवल का आहार करने वाला द्विभाग-प्राप्त कहलाता है। मुर्गी के अण्डे जितने चौबीस कवल का आहार करने वाला अवमोदरिक कहलाता है और मुर्गी के अण्डे जितने बत्तीस कवल का आहार करने वाला प्रमाणप्राप्त कहलाता है। इससे एक ग्रास भी कम २२७
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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