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________________ भगवती सूत्र श. ७ : उ. १ : सू. १६-२२ दुःखी के दुःखस्पर्श आदि का पद १६. भन्ते! दुःखी व्यक्ति दुःख से स्पृष्ट होता है ? अथवा अदुःखी दुःख से स्पृष्ट होता है । गौतम! दुःखी दुःख से स्पृष्ट होता है, अदुःखी दुःख से स्पृष्ट नहीं होता है। १७. भन्ते! दुःखी नैरयिक दुःख से स्पृष्ट होता है ? अथवा अदुःखी नैरयिक दुःख से स्पृष्ट होता है ? गौतम ! भन्ते ! दुःखी नैरयिक दुःख से स्पृष्ट होता है, अदुःखी नैरयिक दुःख से स्पृष्ट नहीं होता । १८. वैमानिक तक सभी दण्डक इसी प्रकार वक्तव्य हैं। १९. इस प्रकार पांच दण्डक ज्ञातव्य हैं - १. दुःखी दुःख से स्पृष्ट होता है, २. दुःखी दुःख का ग्रहण करता है, ३. दुःखी दुःख की उदीरणा करता है, ४. दुःखी दुःख का वेदन करता है, ६. दुःखी दुःख की निर्जरा करता है । ऐर्यापथिक-साम्परायिक- क्रिया-पद २०. भन्ते ! जो अनगार अनायुक्त दशा में (दत्तचित्त न होकर) चलता है, खड़ा होता है, बैठता है, लेटता है, वस्त्र, पात्र, कम्बल और पाद- प्रौछन लेता अथवा रखता है । भन्ते ! क्या उसे ऐर्यापथिकी क्रिया होती है ? अथवा साम्परायिकी क्रिया होती है ? गौतम ! उसे ऐर्यापथिकी क्रिया नहीं होती, साम्परायिकी क्रिया होती है । २१. यह किस अपेक्षा से ? गौतम ! जिसके क्रोध, मान, माया और लोभ व्यवच्छिन्न हो जाते हैं, उसके ऐर्यापथिकी क्रिया होती है, जिसके क्रोध, मान, माया और लोभ व्यवच्छिन्न नहीं होते, उसके साम्परायिकी क्रिया होती है । यथासूत्र - सूत्र के अनुसार चलने वाले के ऐर्यापथिकी क्रिया होती है, उत्सूत्र - सूत्र के विपरीत चलने वाले के साम्परायिकों क्रिया होती है। वह (जिसके क्रोध, मान, माया और लोभ व्यवच्छिन्न नहीं होते) उत्सूत्र ही चलता है। यह इस अपेक्षा से कहा जाता है। स- अंगार आदि दोष से दूषित पान - भोजन पद २२. भन्ते ! स - अंगार, सधूम और संयोजन दोष से दूषित पान - भोजन का क्या अर्थ प्रज्ञप्त है ? गौतम! जो निर्ग्रन्थ अथवा निर्ग्रन्थी अभिलषणीय और एषणीय अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य का प्रतिग्रहण कर उसमें मूर्च्छित, गृद्ध, ग्रथित और आसक्त हो कर आहार करता है, गौतम ! वह पान - भोजन स- अंगार है । जो निर्ग्रन्थ अथवा निग्रन्थी अभिलषणीय और एषणीय अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य का प्रतिग्रहण कर महती अप्रीति और क्रोध-जनित क्लेश करता हुआ आहार कहता है, गौतम ! वह पान - भोजन सधूम है। जो निर्ग्रन्थ अथवा निग्रन्थी अभिलषणीय और एषणीय अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य का प्रतिग्रहण कर उसे अधिक स्वादिष्ट बनाने के लिए दूसरे पदार्थ के साथ मिलाकर आहार २२६
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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