SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 225
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती सूत्र श. ५ : उ. २ : सू. ४३-५१ ४३. भन्ते! इर्षत् पुरोवात आदि कब चलते हैं। (५/४० की तरह) गौतम! जिस समय वायुकाय उत्तरक्रिया(वैक्रिय शरीर की गति) से चलता है, उस समय ईषत् पुरोवात यावत् महावात चलते हैं। (५/४० की तरह) ४४. भन्ते! ईषत् पुरोवात यावत् महावात चलते हैं? (५/४० की तरह) हां, चलते हैं। ४५. भन्ते! ईषत् पुरोवात, पश्चाद्वात आदि कब चलते हैं? (५/४० की तरह) गौतम! जिस समय वायुकुमार और वायुकुमारियां अपने लिए, औरों के लिए या दोनों के लिए वायुकाय की उदीरणा करती हैं, उस समय ईषत् पुरोवात यावत् महावात चलते हैं (५/ ४० की तरह) ४६. भन्ते! क्या वायुकायिक-जीव वायुकाय का ही आन, अपान तथा उच्छ्वास, निःश्वास करते हैं? हां, गौतम! वायुकायिक-जीव वायुकाय का ही आन, अपान तथा उच्छ्वास, निःश्वास करते ४७. भन्ते! क्या वायुकायिक-जीव वायुकाय में ही अनेक लाख बार मर-मर कर वहीं पुनः पुनः उत्पन्न होता है? हां, गौतम! वायुकायिक-जीव वायुकाय में ही अनेक लाख बार मर-मर कर वहीं पुनः पुनः उत्पन्न होता है। ४८. भन्ते! क्या वायुकायिक-जीव स्पृष्ट होकर मरता है अथवा अस्पृष्ट होकर मरता है? गौतम! वह स्पृष्ट होकर मरता है, अस्पृष्ट रहकर नहीं मरता। ४९. भन्ते! वायुकायिक-जीव सशरीर निष्क्रमण करता है अथवा अशरीर निष्क्रमण करता है? ___ गौतम! यह स्यात् सशरीर निष्क्रमण करता है, स्यात् अशरीर निष्क्रमण करता है। ५०. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है वायुकायिक-जीव स्यात् सशरीर निष्क्रमण करता है, स्यात् अशरीर निष्क्रमण करता है। गौतम! वायुकायिक-जीव के चार शरीर प्रज्ञप्त हैं, जैसे-औदारिक, वैक्रिय, तैजस और कार्मण। वह औदारिक और वैक्रिय शरीर को छोड़कर तैजस ओर कार्मण शरीर के साथ निष्क्रमण करता है। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है वह स्यात् सशरीर निष्क्रमण करता है, स्यात् अशरीर निष्क्रमण करता है। ओदन आदि 'किसके शरीर' का पद ५१. भन्ते! ओदन, कुल्माष और सुरा–इन्हें किन जीवों का शरीर कहा जा सकता है? गौतम! ओदन, कुल्माष और सुरा में जो सघन द्रव्य हैं, वे पूर्व-पर्याय-प्रज्ञापन की अपेक्षा से वनस्पति-जीवों के शरीर हैं। उसके पश्चात वे शस्त्रातीत और शस्त्र-परिणत तथा अग्नि से श्यामल, अग्नि से शोषित और अग्नि-रूप म परिणत होने पर उन्हें अग्नि-जीवों का शरीर १५५
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy