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________________ भगवती सूत्र श. ५ : उ. २ : सू. ३३-४२ ३३. इसी प्रकार पश्चिम, दक्षिण, उत्तर, उत्तर-पूर्व (ईशान कोण), दक्षिण-पश्चिम (नैऋत्य कोण), दक्षिण-पूर्व (आग्नेय कोण) और उत्तर-पश्चिम (वायव्य कोण ) में वात चलते हैं। ३४. भन्ते! जिस समय पूर्व में ईषत् पुरोवात, पश्चाद्वात, मन्दवात और महावात चलते हैं, उस समय पश्चिम में भी ईषत् पुरोवात, पश्चाद्वात, मन्दवात और महावात चलते हैं ? जिस समय पश्चिम में ईषत् पुरोवात, पश्चाद्वात, मन्दवात और महावात चलते हैं, उस समय पूर्व में भी चलते हैं ? हां, गौतम! जिस समय पूर्व में ईषत् पुरोवात, पश्चाद्वात, मन्दवात और महावात चलते हैं, उस समय पश्चिम में भी ईषत् पुरोवात, पश्चाद्वात, मन्दवात और महावात चलते हैं; जिस समय पश्चिम में ईषत् पुरोवात, पश्चाद्वात, मन्दवात और महावात चलते हैं, उस समय पूर्व में भी ईषत, पुरोवात, पश्चाद्वात, मन्दवात और महावात चलते हैं । ३५. इस प्रकार सब दिशाओं और सब विदिशाओं में वात चलते हैं । ३६. भन्ते। द्वीपों में उत्पन्न ईषत् पुरोवात चलते हैं ? ( ५ / ३१ की तरह) हां, चलते हैं। ३७. भन्ते। समुद्रों में उत्पन्न ईषत् पुरोवात चलते हैं ? ( ५ / ३१ की तरह) हां, चलते हैं। ३८. भन्ते। जिस द्वीपों में उत्पन्न ईषत् पुरोवात चलते हैं, उस समय समुद्रों में उत्पन्न ईषत् पुरोवात भी चलते हैं ? जिस समय समुद्रों में उत्पन्न ईषत् पुरोवात चलते हैं, उस समय द्वीपों में उत्पन्न ईषत् पुरोवात भी चलते हैं ? ( ५ / ३१ की तरह) यह अर्थ संगत नहीं है । ३९. भन्ते। यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है - जिस द्वीपों में उत्पन्न ईषत् पुरोवात चलते हैं, उस समय समुद्रों में उत्पन्न ईषत् पुरोवात नहीं चलते हैं ? जिस समय समुद्रों में उत्पन्न ईषत् पुरोवात चलते हैं, उस समय द्वीपों में उत्पन्न ईषत् पुरोवात नहीं चलते हैं ? ( ५ / ३१ की तरह) गौतम ! द्वीपोत्पन्न और समुद्रोत्पन्न वात परस्पर विपरीत रूप से चलते हैं, इसीलिए लवण समुद्र वेला का अतिक्रमण नहीं करता । इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है जिस समय समुद्रों में उत्पन्न ईषत् पुरोवात चलते हैं यावत् उस समय द्वीपों में उत्पन्न ईषत् पुरोवात, पश्चाद्वात, मन्दवात और महावात नहीं चलते। ४०. भन्ते ! क्या ईषत् पुरोवात, पश्चाद्वात, मन्दवात और महावात चलते हैं ? हां, वे चलते हैं। ४१. भन्ते ! ईषत् पुरोवात यावत् कब चलते हैं ? (५/४० की तरह) गौतम ! जिस समय वायुकाय यथेर्यं (अपनी स्वाभाविक गति से चलता है, उस समय ईषत् पुरोवात यावत् महावात चलते हैं। ४२. भन्ते ! ईषत् पुरोवात आदि चलते हैं ? (५/४० की तरह) हां, चलते हैं। १५४
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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