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________________ भगवती सूत्र श. ३ : उ. ५ : सू. २०५-२१५ २०५. भन्ते ! जैसे कोई पुरुष एक (अर्ध) पर्यस्तिका - आसन में बैठता है, इसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी कया एक पर्यस्तिका - आसन में बैठ कृत्यागत होकर ऊपर आकाश में उड़ता है ? वही (सूत्र. १९६ की) वक्तव्यता यावत् भावितात्मा अनगार ने क्रियात्मक रूप में न तो कभी ऐसी विक्रिया की, न करता है और न करेगा। २०६. इसी प्रकार द्वि (पूर्ण) पर्यस्तिकासन की वक्तव्यता । २०७. जैसे कोई पुरुष एक (अर्ध) पर्यंकासन में बैठता है, इसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी क्या एक पर्यंकासन में बैठ कृत्यागत होकर ऊपर आकाश उड़ता है ? वही (सूत्र. १९६ की) वक्तव्यता यावत् भावितात्मा अनगार ने क्रियात्मक रूप में न तो कभी ऐसी विक्रिया की, न करता है और न करेगा। २०८. इसी प्रकार द्वि (पूर्ण) पर्यंकासन की वक्तव्यता । भावितात्म- अभियोजना- पद २०९. भन्ते ! भावितात्मा अनगार बहिर्वर्ती पुद्गलों का ग्रहण किए बिना क्या एक महान् अश्व-रूप, हस्ती - रूप, सिंह-रूप, व्याघ्र रूप, भेड़िये का रूप, चीते का रूप, रींछ का रूप, तेंदुए का रूप अथवा अष्टापद - रूप की अभियोजना ( उनके शरीर में अनुप्रविष्ट हो व्यापृत करने) में समर्थ है ? नहीं, यह अर्थ संगत नहीं है । २१०. भन्ते ! भावितात्मा अनगार बहिर्वर्ती पुद्गलों का ग्रहण कर क्या एक महान् अश्व-रूप, हस्ती - रूप, सिंह - रूप, व्याघ्र रूप, भेड़िये का रूप, चीते का रूप, रींछ का रूप, तेंदुए का रूप अथवा अष्टापद-रूप की अभियोजना ( उनके शरीर में अनुप्रविष्ट हो व्यापृत करने) में समर्थ है ? हां, समर्थ है। २११. भन्ते ! भावितात्मा अनगार क्या एक महान् अश्वरूप की अभियोजना कर अनेक योजनों तक जाने में समर्थ है ? हां, समर्थ है २१२. भन्ते ! क्या भावितात्मा अनगार अपनी ऋद्धि से जाता है ? पर ऋद्धि से जाता है ? गौतम ! वह अपनी ऋद्धि से जाता है, पर - ऋद्धि से नहीं जाता। २१३. भन्ते ! क्या भावितात्मा अनगार अपनी क्रिया से जाता है ? पर क्रिया से जाता है ? गौतम ! वह अपनी क्रिया से जाता है, परक्रिया से नहीं जाता । २१४. भन्ते ! क्या भावितात्मा अनगार अपने प्रयोग से जाता है ? पर प्रयोग से जाता है ? गौतम ! वह अपने प्रयोग से जाता है, पर प्रयोग से नहीं जाता। २१५. भन्ते ! कया भावितात्मा अनगार ऊपर उठी हुई पताका के रूप में जाता है ? नीचे गिरी १३६
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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